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“ माँ! तुम्हे भैया के फ्लेट से आये हुए, यहाँ मेरे पास दो महीने हो गये है. उनका फ्लेट काफी बड़ा भी है, कुछ महीने वहाँ रह आओ. आखिर! उन्हें आपकी कमी भी तो महसूस होती होगी “  

अचानक अपने कमरे में से निकलकर छोटे बेटे के इन उदारता भरे शब्दों को सुनकर, माँ को दो माह पहले बड़े बेटे की उदारता याद आ गई. आँखों में नमी लेकर अपने कपड़ो का बेग जमाते हुये उसे मन में दोनों बेटों के फ्लेट,  अपनी कोख से बहुत  ही छोटे लग रहे थे..

 

 जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)      

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 2, 2015 at 4:16pm

बेहद सटीक लघुकथा। बधाई

Comment by वीनस केसरी on May 2, 2015 at 4:12pm

सटीक ...

सटाक ...

Comment by Archana Tripathi on May 2, 2015 at 3:55pm
"फ्लैट कोख से भी छोटे लगे "दिल को छूती अंतिम पंक्तिया बेहद प्रभावशाली है ।बधाई जितेंद्र पस्टारिया जी बेहद उत्कृष्ट लघु कथा के लिए ।
Comment by Vivek Jha on May 1, 2015 at 1:14pm

बहुत ही मार्मिक, दो से तीन पंक्तियों में आपने बेहतरीन भाव पिरो दिए जिंतेंद्र जी, लघुकथा के लिए मिशाल है ये कहानी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 1, 2015 at 11:18am

आपकी उपस्थिति हेतु आपका ,हार्दिक आभार. आदरणीय राजेन्द्र जी

सादर!

Comment by RAJENDER KUMAR GAUR on April 29, 2015 at 1:07pm

JEEVAN ME JYADA HONA BHI DUKH DAI

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 1, 2015 at 8:40am

आदरणीय वीर जी, आपके सराहनीय प्रोत्साहन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 1, 2015 at 8:39am

आदरणीय गौरव जी ,आपका बहुत-बहुत आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 1, 2015 at 8:38am

आदरणीय हरिप्रकाश जी. लघुकथा पर आपकी उपस्थिति व् सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ.

सादर!

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 31, 2015 at 3:43pm

आदरणीय जितेन्द्र जी, बहुत सुन्दर रचना ! ... आज के समय में माता पिता को कुछ दिन रखना एक "उदारता"  ही बनता जा रहा है ...... सुन्दर कटाक्ष, हार्दिक बधाई स्वीकार करे

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