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“ माँ! तुम्हे भैया के फ्लेट से आये हुए, यहाँ मेरे पास दो महीने हो गये है. उनका फ्लेट काफी बड़ा भी है, कुछ महीने वहाँ रह आओ. आखिर! उन्हें आपकी कमी भी तो महसूस होती होगी “  

अचानक अपने कमरे में से निकलकर छोटे बेटे के इन उदारता भरे शब्दों को सुनकर, माँ को दो माह पहले बड़े बेटे की उदारता याद आ गई. आँखों में नमी लेकर अपने कपड़ो का बेग जमाते हुये उसे मन में दोनों बेटों के फ्लेट,  अपनी कोख से बहुत  ही छोटे लग रहे थे..

 

 जितेन्द्र पस्टारिया

(मौलिक व् अप्रकाशित)      

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Comment by Gaurav Nigam on March 31, 2015 at 12:50pm

उत्तम. कम  शब्दों में गहरी बात 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 8:22pm

आदरणीय जितेन्द्र भाईसाहब  हार्दिक बधाई, बहुत सुन्दर रचना, एक वक़्त आता है ये ठेला- ठेली लगी रहती है , कई लोगों के जीवन में !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 30, 2015 at 8:18am

रचना की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ, आदरणीया वंदना जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 30, 2015 at 8:18am

प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार,आदरणीय श्याम नारायण जी

सादर!

Comment by vandana on March 28, 2015 at 8:13pm

मार्मिक रचना आदरणीय जितेन्द्र जी 

Comment by Shyam Narain Verma on March 28, 2015 at 4:00pm
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय, हार्दिक बधाई स्वीकारें
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 28, 2015 at 10:22am

आपका बहुत-बहुत आभार,आदरणीय उमेश जी

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 28, 2015 at 10:21am

लघुकथा पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति हेतु आपका आभारी हूँ,आदरणीय बृजेश जी.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 28, 2015 at 10:19am

आदरणीय श्याम मथ्पाल जी आपका बहुत-बहुत आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 28, 2015 at 10:17am

आदरणीय विनय जी. रचना पर आपसे सराहना पाकर, रचना को सार्थकता मिलती है

सादर!

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