“ माँ! तुम्हे भैया के फ्लेट से आये हुए, यहाँ मेरे पास दो महीने हो गये है. उनका फ्लेट काफी बड़ा भी है, कुछ महीने वहाँ रह आओ. आखिर! उन्हें आपकी कमी भी तो महसूस होती होगी “
अचानक अपने कमरे में से निकलकर छोटे बेटे के इन उदारता भरे शब्दों को सुनकर, माँ को दो माह पहले बड़े बेटे की उदारता याद आ गई. आँखों में नमी लेकर अपने कपड़ो का बेग जमाते हुये उसे मन में दोनों बेटों के फ्लेट, अपनी कोख से बहुत ही छोटे लग रहे थे..
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय डा.गोपाल जी. लघुकथा पर आपकी सराहना पाकर बहुत मनोबल मिलता हैआपका ह्रदय से आभार
सादर!
बहुत खूब...मार्मिक चित्रण
आ.जितेन्द्र पस्टारिया जी,
आ. सुंदर लघु कथा. बधाई .
वाह , मन को भिगो दिया आपने | बहुत सुन्दर लघुकथा , बहुत बहुत बधाई आदरणीय..
वाह जीतू भाई
मर्म को पकडती कथा और सुन्दर प्रस्तुति . सादर .
लघुकथा के मर्म को आपने छुआ, आपकी पाठकधर्मिता को नमन, आदरणीय मोहन जी
सादर!
रचना पर आपके आशीर्वाद के लिए, आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय डा.विजय जी
सादर!
आदरणीय मिथिलेश जी. आपकी उपस्थिति व् स्नेहिल सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ. आपके मार्गदर्शन का बहुत-बहुत आभार, मैंने कुछ संसोधन किया है
सादर!
आदरणीय दिल में चुभने वाले भाव भर दिये आपने चार लाइनों में ....
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