२१२२ / २१२२/ २१२२/ २१२ |
राह चलते दिल मिला फिर याद बनकर रह गया | |
ख़्वाब जो देखा कभी वो अश्क बनकर बह गया | |
रात बीती चांदनी में खाब आँखों में लिये , |
रेत की दीवार वो कुछ ही पलों में ढह गया | |
दूर होकर भी मिलन का फूल खिलता ही रहा , |
आँखें रोती रह गयीं सपना अधूरा रह गया | |
होश खो बैठे न जानें किस कदर बहकाव में , |
जिंदगी से खेल कर ही कोई क्या क्या कह गया | |
रोज मिलते राह में अब अजनबी ही की तरह , |
चेहरा तो है वहीँ पर तीर दिल अब सह गया | |
बेवफा के नाम पर वर्मा जमाना चुप रहा , |
ले कसम लूटे कहीं कोई रिश्ता क्या रह गया | |
श्याम नारायण वर्मा |
(मौलिक व अप्रकाशित) |
Comment
आदरणीय मिथिलेश जी और आदरणीय जीतेन्द्र जी रचना की सराहना के लिए मैं आप का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ |
सादर
बहुत सुंदर गजल प्रस्तुति ,आदरणीय श्याम जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें
आदरणीय श्याम जी सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
आदरणीय डा. विजय शंकर जी और डा. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना भाव पसंद करने के लिए आप लोगों का बहुत बहुत आभार |
आ० वर्मा जी
बेहतरीन गजल . सादर .
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