For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : रंगमंच ये सारा उसका, उसके ही तो है .... (मिथिलेश वामनकर)

22-22--22-22--22-22—2 

 

तुम बिन सूने-सूने लगते  जीवन-वीवन सब

साँसें-वाँसें, खुशबू-वुशबू, धड़कन-वड़कन सब

 

आज सियासत ने धोके से, अपने बाँटें है-

बस्ती-वस्ती, गलियाँ-वलियाँ, आँगन-वाँगन सब 

 

मन को सींचों, रूठे रहते बंजर धरती से-

बादल-वादल, बरखा-वरखा, सावन-वावन सब

 

कितनी जल्दी छिन जाते है पद से हटते ही  

कुर्सी-वुर्सी, टेबल-वेबल, आसन-वासन सब

 

तेरी चुप्पी में भी मुझसे बातें करते हैं-

पायल-वायल, बिंदिया-विंदियाँ, कंगन-वंगन सब

 

तुम आई जो मन मंदिर में, जी को भाए हैं-

पूजा-वूजा, श्रद्धा-व्रद्धा, दर्शन-वर्शन सब

 

रंग मुहब्बत का छाया तो हमने तोड़े है-

रिश्तें-विश्तें, कसमें-वसमें, बंधन-वंधन सब

 

यार मिला तो, छोटे लगते, कस्बे के आगे-

पेरिस-वेरिस, बर्लिन-वर्लिन, लन्दन-वन्दन सब

 

तेरी साँसों के बिन कितने सादे लगते हैं-

जूही-वूही, मोंगर-वोंगर, चन्दन-वन्दन सब

 

रंगमंच ये सारा उसका, उसके ही तो है-

नाटक-वाटक, परदे-वरदे, मंचन-वंचन सब 

 

------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
---------------------------------------------------- 

Views: 1050

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 5:24pm

आदरणीय गुमनाम सर जी हार्दिक आभार.

आपने भी खूब लिखा है. 

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 2, 2015 at 4:41pm
वाह सर वाह बहुत खूब ग़ज़ल हुई है बधाई ,,,,,,,राहत साहब की इस ग़ज़ल मैंने भी लिखा था वो कुछ इस तरह से है ,,,,,,अब के बारिश में तो टूट चुका है घर वर सब
कमरे वमरे, छज्जा वज्जा छप्पर वप्पर सब

भ्रष्टाचारी दल दल में पूरा डूब चुके हैं
बाबू वाबू , खाकी वाकी , खद्दर वद्दर सब

लड़की को कम ना आंको वो भी बन सकती है
लायर वायर डॉक्टर वॉक्टर टीचर वीचर सब

इनको सब से क्या मतलब ये दौलत उपासक हैं
पण्डे वन्दे ,हाजी वाजी , फादर वादर सब

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 4:30pm

आदरणीय विजय शंकर सर हार्दिक आभार, नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 4:29pm

आदरणीया महिमा जी सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 4:28pm

आदरणीय कृष्ण जी आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 4:28pm

आदरणीय सुनील जी आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 4:27pm

आदरणीय गिरिराज सर, सराहना के लिए आभार , मतले में संशोधन करता हूँ. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 4:25pm

आदरणीय गोपाल सर हार्दिक आभार.

ये ग़ज़ल राहत साहब की ग़ज़ल से प्रेरित है. पहले तरही ग़ज़ल ही लिखना चाह रहा था लेकिन फिर नए काफिया के साथ लिखने लगा.

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 2, 2015 at 4:22pm
प्रिय मिथिलेश जी , बहुत सुन्दर प्रयोग ,राहत इंदौरी की तर्ज पर , बधाई , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 4:21pm

आदरणीय नीलेश जी, ग़ज़ल पर मार्गदर्शन के लिए आभार. मतले पर पुनः विचार करता हूँ. 

राहत साहब के रंग का ही असर है. पहले रदीफ़ 'क्या' ले रहा था किन्तु 'सब' के सम्मोहन को छोड़ नहीं पाया,

सादर.  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service