For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आपने नहीं पहचाना शायद -- अतुकांत - गिरिराज भंडारी

उड़ानें उसकी बहुत ऊँची हो चुकी हैं

बेशक ,  बहुत ऊँची

खुशी होती है देख कर

अर्श से फर्श तक पर फड़फड़ाते

बेरोक , बिला झिझक, स्वछंद उड़ते देख कर उसे

जिसके नन्हें परों को

कमज़ोर शरीर में उगते हुए देखा है

छोटे-छोटे कमज़ोर परों को मज़बूतियाँ दीं थीं

अपने इन्हीं विशाल डैनों से दिया है सहारा उसे

परों को फड़फड़ाने का हुनर बताया था  

दिया था हौसला, उसकी शुरुआती स्वाभाविक लड़खड़ाहट को

खुशी तब भी बहुत होती थी

नवांकुरों की कोशिशें देख कर गदगद हो जाता था मन आनन्द से

 

मगर अफसोस भी है आज , कुछ कुछ 

अधिक नहीं , पर है

कुछ की अंधी उड़ानों  पर ,

नासमझियों पर ,

स्वार्थपरता पर ,

संवेदनहीनता पर

उड़ाने इतनी ऊँची हैं, कि

नज़र नहीं आती अब ज़मीन भी

वो ज़मीन ,

जहाँ पहली उछाल भरी थी उसने परवाज़ के लिये

नहीं दिखते उसे अब वो मज़बूत डैने , जिन्होंने तब सहायता की थी उड़ने में

नज़र नहीं आते उसे

आज के नौसिखियों के लड़खड़ाते पंख भी

न ही जागती हैं सहारे बन जाने की इच्छायें , संवेदनायें ,

जैसे कोई बना था उसके लिये

न ही झलकता है कोई अहो भाव

किन्हीं बूढे होते पंखों के प्रति

 

दुखद आश्चर्य है मुझे

कोमलता की कोख से जन्म कैसे पा गई

निपट कठोरता , स्वार्थपरता  

मै तो बददुआयें भी नहीं दे सकता

कैसे दूँ ? अपने इन्हीं डैनों में खिलाया है उसे

आखिर मैंने ही तो पाल पोस के उसे इतना बड़ा किया है

कुछ एक घूंट कड़वा ही सही

पर मैं तो यही कहूँगा ,

खुश रहो ! खूब उड़ो !

मेरे प्यार भरे दिल में कोई जगह ही नहीं है

नफरत के लिये

आपने नहीं पहचाना शायद

मै ओ बी ओ हूँ 

आप सबका ,

अपना ओ बी ओ

********************** 

मौलिक अवँ अप्रकाशित

Views: 645

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 14, 2015 at 11:26am
आदरणीय गिरिराज इस रचना के माध्यम से आपने एक सार्थक संदेश को उद्भावित किया नव अंकुर पांखियों को जिस तरह ओबिओ उडान के लिए एक उन्मुक्त गगन दे रहा है उसी तरह समाज भी इन्हें दे तो बात बने,अत्यंत सराहनीय सृजन नमन आपको।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2015 at 11:06am

आदरणीय सौरभ भाई , क्या बात है , रचना से जियादा खूबसूरत तो आपकी प्रतिक्रिया है , आप मेरी रचना को मुझसे भी जियादा अच्छे से समझ पाये  हैं  ये कहने  मे मुझे कोई संकोच नहीं है , मेरी रचना धन्य हुई ॥ आपका हृदय से आभारी हूँ ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 13, 2015 at 12:34pm

यह कविता किसी मंच के प्रति किसी सदस्य की मात्र प्रतिबद्धता साझा नहीं करती, आदरणीय गिरिराजभाईजी. कर भी नहीं सकती.

यह रचना तो उस सहेजती और पोसती हुई संज्ञा की धमनियों में बहते रक्त की आवृति की अनुगूँज है जिसका उत्साह किसी एक के सफल होने या न होने पर निर्भर नहीं करता, बल्कि सर्वसमाहिता का दायित्व ओढ़े वह संज्ञा सबकी सफलता की कामना करती चलती है. लेकिन ऐसी उदार भावनाएँ किसी एक विन्दु पर सिमट कर रह जायें तो व्यापकता का संकुचन प्रारम्भ हो जाता है. यहीं प्रकृति सचेत हो जाती है. प्रकृति ऐसी संज्ञाओं को मरने नहीं देती. तभी सर्वसमाही लोग हर काल, हर युग में जनमते हैं. मंच बनाते हैं और अपने जैसों को आकाश और भूमि देते हैं. इसी कारण, इन मंचों के माध्यम से सीखे-समझे’ हुओं से व्यापक आचरण के अनुकरण की अपेक्षा हुआ करती है. शत-प्रतिशत ऐसा संभव तो नहीं होता. लेकिन दुख तो होता ही है, जब कोई ’सीखा’ हुआ व्यक्ति असंवेदनशील हुआ लापरवाह बर्ताव करता है. साथ ही, लम्बी-लम्बी बातें करता हुआ फलांगता भी दिखता है.    

आपकी संवेदना को नमन, आदरणीय.

ओबीओ जैसा कोई मंच यदि दस लापरवाहों से दुखी होता है, तो किसी एक संकल्पित की संलग्नता से प्राणवान भी रहता है. सीखने और बरतने का संसार ऐसा ही है.
इस अत्यंत प्रभावी कविता के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ  
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 5, 2015 at 11:17pm

आदरणीय हरि भाई , रचना के भाव स्वीकारने के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 5, 2015 at 11:14pm

आदरणीय कृष्णा भाई , रचाना के भावों को आपकी सहमति मिली , बहुत अच्छा लगा ! आपका बहुत आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 5, 2015 at 11:11pm

आदरणीय सुनील भाई , आपने सही कहा , यहाँ हम सब  आपस मे ही सीखते हैं ॥

Comment by Hari Prakash Dubey on April 5, 2015 at 7:44pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर, बहुत ही सुन्दर , ओ बी ओ के प्रति आपका भाव ,स्तुति करने योग्य है , सादर !

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 5, 2015 at 5:05pm

ओबीओ को समर्पित इस लाजव़ाब रचना पर आपको नमन आदरणीय!

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 4, 2015 at 9:37pm
सही कहा आदरणीय आपने,मै भी आप सभी से कुछ सीखने की ही आसा से आया हूँ आप सबके बीच कृपया अन्यथा या अतिशय वाली कोई बात नहीं क्षमा तो औपचारिकता है महाशय।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 4, 2015 at 12:26pm

आदरणीय सुनील भाई , माफी मांग के मुझे शर्मिन्दा न करें , सीखने- सिखाने के मंच में ये सब तो होगा ही ॥ सादर निवेदन !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
15 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
15 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
17 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
18 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
18 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
18 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
18 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service