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प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही
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प्यास में अब. पानी न मिले शबनम ही सही
ख्वाब तो हो, सच्चा न सही मुबहम ही सही
लम्स तेरा जिसमें न मिले वो चीज़ ग़लत
आब हो या महताब हो या ज़म ज़म ही सही
मेरे सहन में आज उजाला , कुछ तो करो
धूप अगर हलकी है उजाला कम ही सही
कुछ तो इधर अब फूल खिले सह्राओं में भी
काँटों लदी हो डाल खिले कम कम ही सही
तेज़ बहुत रफ़्तार लगी खुशियों की उधर
कुछ तो बहे अपनी भी गली , मद्धम ही सही
है तो फिरी दुनिया की नज़र चल मान लिया
मेरी वफ़ा कायम है अगर कायम ही सही
ता कि ये हथकड़ियाँ भी शिकायत कर न सके
जब न कलाई कोई जँची, तो हम ही सही
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नीरज भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय आशुतोष भाई , हौसला अफज़ाई के लिये दिली शुक्रिया ।
वाह वाह आदरणीय क्या खूब .... ख्वाब तो हो, सच्चा न सही मुबहम ही सही .... बिना ख्वाब के भी क्या जीवन ॥
आदरणीय गिरिराज भाई साब ..हर ग़ज़ल में एक ताजगी होती है ..इस बेहतरीन रचना के लिए हादिक बधाई सादर
आदरणीय उमेश भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया ॥
तेज़ बहुत रफ़्तार लगी खुशियों की उधर
कुछ तो बहे अपनी भी गली , मद्धम ही सही
हर शेर पर वाह निकले सर वाहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहह
आदरणीय मिथिलेश भाई , सराहना के लिये आपका बहुत आभार ॥ आपको इस बह्र पर काम करते पढ़ के बहुत खुशी हुई ॥
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , आपसे तारीफ पाके गज़ल मुकम्मल हुई , आपका दिली शुक्रिया ॥
आअदरणीय श्याम भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।
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