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उठने लगा है दिल से मेरे ये सवाल क्यों
इस तंगदिल जहाँ से करूँ अर्ज़े हाल क्यों
तुझसे रही न कोई शनासाई ऐ हयात
फिर बार-बार आये तेरा ही खयाल क्यों
हैं अश्क़बार और भी इस बज़्म में कई
ऐ दोस्त ये बता कि मेरी ही मिसाल क्यों
आयेंगे और लम्हे अभी तो बहार के
आखिर तुम्हें है शाखे शजर ये मलाल क्यों
कैसे बताये कोई मुकद्दर किसी का क्या
कल जो खिला चमन में वो अब पायमाल क्यों
जिनकी वफा का बोझ लिये चल रहा था मैं
उनको पता नहीं मेरा जीना मुहाल क्यों
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय दिनेश कुमार जी आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीया वंदनाजी रचना को समय देने के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय मिथिलेश भाई हौसलाअफ़्ज़ाई के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका हार्दिक आभार
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका हार्दिक आभार
आदरणीय नीरज नीर जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय निर्मल नदीम जी ग़ज़ल को समय देने के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया
आदरणीय शिज्जु भाई , कमाल की गज़ल कही ! हर शे र अपने आप मे मुकम्मल है ! पूरी गज़ल के लिये दिली मुबारक बाद कबूल करें ।
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