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उठने लगा है दिल से मेरे ये सवाल क्यों- ग़ज़ल

221 2121 1221 212

उठने लगा है दिल से मेरे ये सवाल क्यों

इस तंगदिल जहाँ से करूँ अर्ज़े हाल क्यों

 

तुझसे रही न कोई शनासाई ऐ हयात

फिर बार-बार आये तेरा ही खयाल क्यों

 

हैं अश्क़बार और भी इस बज़्म में कई

ऐ दोस्त ये बता कि मेरी ही मिसाल क्यों

 

आयेंगे और लम्हे अभी तो बहार के

आखिर तुम्हें है शाखे शजर ये मलाल क्यों

 

कैसे बताये कोई मुकद्दर किसी का क्या

कल जो खिला चमन में वो अब पायमाल क्यों

 

जिनकी वफा का बोझ लिये चल रहा था मैं

उनको पता नहीं मेरा जीना मुहाल क्यों

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 6, 2015 at 8:16am

आदरणीय दिनेश कुमार जी आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 6, 2015 at 8:15am

आदरणीया वंदनाजी रचना को समय देने के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 6, 2015 at 8:15am

आदरणीय मिथिलेश भाई हौसलाअफ़्ज़ाई के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 6, 2015 at 8:14am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका हार्दिक आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 6, 2015 at 8:14am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 6, 2015 at 8:13am

आदरणीय नीरज नीर जी आपका हार्दिक आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 6, 2015 at 8:12am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 6, 2015 at 8:11am

आदरणीय निर्मल नदीम जी ग़ज़ल को समय देने के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by गिरिराज भंडारी on April 5, 2015 at 11:21pm

आदरणीय शिज्जु भाई , कमाल की गज़ल कही ! हर शे र अपने आप मे मुकम्मल है ! पूरी गज़ल के लिये दिली मुबारक बाद कबूल करें ।

Comment by Samar kabeer on April 5, 2015 at 11:17pm
जनाब शिज्जु "शकूर" जी,आदाब,हर ऐतबार से मुकम्मल ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

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