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रखे जो सदा हौसला और उमीद
उसी के ही दुनिया में बनते हैं काम.................बहुत सुन्दर शेर कहा है आ० दिनेश कुमार जी
आदरणीय गिरिराज सर शंका समाधान के लिए आभार.
आदरणीय दिनेश भाई , ज़िन्दगी की सच्चाइयाँ बयान करती आपकी ग़ज़ल के लिये आपको बधाई !!
आदरणीय - मेरी सीमित जानकारी के अनुसार किसी बह्र मे अंतिम मात्रा 1 नही होती , इस एक मात्रा को छूट की तरह इस्तेमाल किया जाता है , जिसे अन्य मिसरों मे निभाना ज़रूरी नहीं होता है । अतः आपकी लिखी ग़ज़ल की मात्रा का भार 122 122 112 12 होना चाहिये । सादर !!
न जाने सभी की ये फितरत है क्यूँ
मुसीबत में ही याद आते हैं राम
इस शेर के हवाले से ग़ज़ल पर ढेर सारी दाद कुबूल फरमाएं आदरणीय दिनेश भाई जी
BAHUT KHOOOB BHAI WAAAH WAAAAH. BAHUT UMDA
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