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हवा क्यूँ है ?
ये सूरज क्यूँ है ?
क्या करूँगा मैं किरणों का
ये सूरज निकलता क्यूँ है ?
ना जमीं मेरी है
ना आसमां मेरा
बस इन अंधेरों का अँधेरा मेरा !
ये चमन क्यूँ है
ये फूल मुरझाये क्यूँ नहीं अब तक
ये तितलियाँ... ये भंवरे
घर गये क्यूँ नहीं अब तक
पेड़ों ने पत्तियाँ गिराई नहीं ?
हर चीज़ क्यूँ मुरझाई नहीं अब तक
धड़कनें क्यूँ चल रही हैं धक धक
जब तू ही नहीं
तो क्यूँ है ये दुनियाँ अब तक !!

*******************************************

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 10, 2015 at 8:14pm

जब तू ही नहीं
तो क्यूँ है ये दुनियाँ अब तक... बहुत खूब, आदरणीय मोहन जी. प्रस्तुति बधाई स्वीकारें

Comment by maharshi tripathi on April 9, 2015 at 5:07pm

धड़कनें क्यूँ चल रही हैं धक धक
जब तू ही नहीं
तो क्यूँ है ये दुनियाँ अब तक !!,,,सुन्दर पंक्ति |

Comment by Shyam Narain Verma on April 9, 2015 at 10:45am
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 9, 2015 at 9:54am
जब तू नहीं
तो कुछ भी नहीं
तेरे बिन ॥
बहुत खूब , आदरणीय मोहन सेठी जी , बधाई, सादर।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 9, 2015 at 9:46am

सुन्दर भावाभिव्यक्ति पर बधाई!आ० इन्तजार सर!ऐसी भावना के तीव्र पल हर किसी जीवन में आते है कभी न कभी!

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