कल उपार्जन केंद्र पर रामदीन को अपने नमीरहित शुष्क चमकदार गेहूं को बेचने जाना है. अचानक बे-मौसम घिर आये बादलों को देख, रामदीन अपने आँगन में पड़े अनाज को अपनी पत्नी और छोटे-छोटे बच्चों की मदद से घर में भरने को जुट गया..
उधर उपार्जन केंद्र पर किसानों से ही खरीदा हजारों क्विंटल गेहूं खुले में पड़ा हुआ है. जिला प्रशासनिक अधिकारी ने चिंता जताते हुए समिति अध्यक्ष को फोन पर जानकारी लेते हुए पूछा..
“ उपज पर बारिश न हो, इसकी कैसी क्या व्यवस्था है..? अगर बारिश होती है तो अधिक से अधिक कितना नुक्सान दर्शा सकते है..”
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आपका बहुत-बहुत आभार,आदरणीय राजेन्द्र जी
सादर!
DUKHAD LEKIN SATYA HALAT
आपसे रचना पर प्रोत्साहन और सराहना पाकर बहुत संतोष मिलता है आदरणीय मिथिलेश जी. आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर!
रचना की मुक्तकंठ से सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभार, आदरणीय कृष्णा जी.
सादर!
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया, रचना को सार्थकता प्रदान करती है. आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीया राजेश दीदी
सादर!
इस बेहतरीन और सार्थक लघुकथा की जितनी तारीफ़ की जाये कम है,ऐसे ही गूंढ मुद्दों को उठाने की जरुरत है! बहुत बहुत हार्दिक बधाईयां!
यही हाल है सब जगह व्यवस्था चौपट है तथा अपने फायदे की बात पहले सोच लेते हैं देश में कितने लोग ऐसे हैं जिन्हें एक वक़्त की रोटी भी नहीं मिलती और प्रशासन के पास इतना अनाज सड़ता रहता है ...बहुत विचारणीय मर्म है लघु कथा का --दिल से बधाई जितेन्द्र भैया |
आपका बहुत-बहुत आभार ,आदरणीया ज्योतिर्मय पन्त जी
सादर!
आपकी बधाई सहर्ष सिर आँखों पर, आदरणीय गिरिराज जी
सादर!
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