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बात उतनी कहां पुरानी थी

2122 1212 22

बात उतनी कहां पुरानी थी
मिलते हीं याद तब की आनी थी.

फ़र्क़ इतना दिखा मुझे यारों
अाज पीरी है तब जवानी थी.

वो दिखा हीं न ज़िन्दगी जीते
ज़िन्दगी उसकी बस ज़ुबानी थी.

बेवफ़ा हो के रात भर रोया
बेबसी उसकी क्या कहानी थी.

आज दरिया-ए-चश्म में उसके
थोङे पानी में क्या रवानी थी.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by shree suneel on April 14, 2015 at 1:23am
आदरणीय गिरिराज सर, ग़ज़ल आपको पसंद आई इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
बहरहाल, आपका सुझाव बहुमूल्य है. आशा है आगे भी आपका मार्ग दर्शन प्राप्त होता रहेगा, सादर
Comment by shree suneel on April 14, 2015 at 12:26am
आदरणीय समर कबीर सर, ग़ज़ल आपको अच्छी लगी, ये इनाम सा है. बहुत बहुत शुक्रिया सर
Comment by shree suneel on April 14, 2015 at 12:10am
शुक्रिया... कृष्ण मिश्रा जी. शुक्रिया
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 13, 2015 at 8:40pm

आज दरिया-ए-चश्म में उसके
थोङे पानी में क्या रवानी थी.

बधाई आ०सुनील जी!

Comment by Samar kabeer on April 13, 2015 at 10:53am
जनाब श्री सुनील जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति के लिये दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 13, 2015 at 8:59am

आदरणीय श्री सुनील भाई , बहुत खूब सूरत गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥

वो दिखा हीं न ज़िन्दगी जीते        ---- ज़िन्दगी वो नहीं दिखा जीते   

ज़िन्दगी उसकी बस ज़ुबानी थी. -----   उसकी हर बात बस ज़बानी थी   ---- -- क्या ये ज्यादा अच्छा लगेगा ?

Comment by shree suneel on April 12, 2015 at 11:49pm
धन्यवाद, आदरणीय विजय शंकर सर.
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 12, 2015 at 5:08pm
सुन्दर प्रस्तुति , आदरणीय श्री सुनील जी, सादर।

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