गजल- आत्मा भरपूर सी...
बह्र - 2122, 2122, 2122, 212
फिर मुझे वह हूर सी लगने लगी।
दुश्मनी भी नूर सी लगने लगी।
गंग जन - मन को सदा पावन करे,
वास्तव में सूर सी लगने लगी।
तट, नदी का मध्य भी उकता गया,
रेत - पन्नी घूर सी लगने लगी।
आस्था की डुबकियॉं नित स्वर्ग हित,
बेवजह मगरूर सी लगने लगी।
आदमी सर-झील-नदियॉं पाट कर,
हस्तियॉं मशहूर सी लगने लगी।
आपदाएं नित्य घर-मन दाहतीं,
मंजिलें तन्दूर सी लगने लगी।
त्याग करके हर अहम - आकार को,
आत्मा भरपूर सी लगने लगी।
दर्द में 'सत्यम' किनारे बॅंट गए,
मौज जब मगरूर सी लगने लगी।
के0पी0 सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय जान भाई, कबीर भाई, गोपाल सरजी, हरिप्रकाश भाईजी तथा वीनस भाईजी आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया,आभार प्रकट करता हू. यह सब आप लोगो के सानिध्य मे ही सम्भव हुआ है. सांदर
बहुत खूब
निरंतर लेखन से आपने ग़ज़ल विधा को भी साध लिया है
आदमी सर-झील-नदियॉं पाट कर,
हस्तियॉं मशहूर सी लगने लगी।
आपदाएं नित्य घर-मन दाहतीं,
मंजिलें तन्दूर सी लगने लगी।............सुन्दर रचना केवल जी , बधाई !
केवल जी बहर तो २१२२ २१२२ २१२ ही है i
आपका प्रयास अच्छा है i
आ० सत्यम जी सुन्दर रचना पर बधाई!
आ0 गनेश सर जी, आपका हार्दिक आभार. गलत तकती को सही कर देता हू. सादर
बहर में एक रुक्न आपने अधिक लिख दिया है जैसा की निधि जी ने बतायी हैं,
त्याग कर हर अहं आकार को.....इस मिसरा की जरा तकती देख लीजिये.
मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, बधाई केवल भाई.
आदरणीय सत्यम जी रचना के भाव अच्छे लगे .. मापनी २१२२ २१२२ २१२ पर सही है (एक २१२२ ज्यादा लिख दिया है आपने )
.. लेकिन हिंदी और उर्दू का मेल मुझे कुछ कम जंचा
एक तरफ गंग, पावन, आस्था, आपदा, तट संस्कार जैसे संस्कृत से आये हिंदी शब्द .. दूसरी तरफ नूर, हूर, मगरूर हस्ती जैसे शुद्ध उर्दू शब्द .. कभी कभी ऐसा मेल भी अच्छा लगता है .. लेकिन इस रचना मे ये मेल रचना को थोडा हल्का कर रहा है .. ये मेरा व्यक्तिगत विचार है .. जैसा पढने पर महसूस हुआ
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online