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जिन्दगी के गीत गाता आदमी रो जायेगा

२१२२    २१२२    २१२२   २१२

जिन्दगी के गीत गाता आदमी रो जायेगा

जिस घड़ी पत्थर का ये दिल मोम सा हो जायेगा

 

भूख से बेहाल बच्चा जो न सोया अब तलक

माँ अगर लोरी सुना दे भूखा ही सो जायेगा

 

आज तक मंदिर न जाकर कर दिया जो पाप है

माँ की सेवा से मिला आशीष वो धो जायेगा

 

मुतमइन था देख कर मैले में इंसानों की भीड़
तब न सोचा था,यहाँ बच्चा मेरा खो जाएगा

 

मानती जिस को थी दुनिया इक मसीहा आज तक

बीज नफरत के नहीं सोचा था यूं बो जायेगा

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 26, 2015 at 10:04pm

आ० आशुतोष सर जी,सुन्दर गजल पर हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 26, 2015 at 9:49am

आदरणीय डॉ आशुतोष जी ग़ज़ल पर आपका प्रयास सराहनीय है बधाई स्वीकार करें । ग़ज़ल को थोड़ा समय दिया करें तो और भी ज़्यादा निखार आ जायेगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2015 at 11:37pm

आदरणीय आशुतोष भाई , अच्छी गज़ल हुई है , बधाई आपको ! आ. समर भाई की सलाह उचित है , खयाल कीजियेगा ॥

Comment by Samar kabeer on April 23, 2015 at 4:26pm
जनाब डा.आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,

"जब गए थे मेले में हम सब लगे इंसान से
तब न सोचा था कि बच्चा यूं मेरा खो जायेगा"

मेरा मशविरा ये है कि इस शैर को इस तरह लिखें तो आपका ख़याल भी पूरी तरह इसमें आ जाएगा :-

"मुतमइन था देख कर मैले में इंसानों की भीड़
तब न सोचा था,यहाँ बच्चा मेरा खो जाएगा"
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 23, 2015 at 2:46pm

आदरणीय डॉ विजय सर ..आप सबकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रियाओं से ही नया लिखने का हौसला मिलता है सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 23, 2015 at 2:44pm

आदरणीय बागी जी ..रचना पर आपके मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद . आपके प्रतिक्रिया पर चिंतन किया तो लगा या तो मैं अपनी सोच को सही ढंग से रख नहीं सका ..या फिर मेरी सोच ही गलत थी ..मैं इस पर ज्यादा सोच नहीं पा रहा हूँ ..आपके मार्गदर्शन से मैं शायद सही दिशा में सोच पाऊँ ..सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 23, 2015 at 2:19pm

अ० आशुतोष जी

आपकी अच्छी गजलें पढ़ी हैं  पर इसमें आपने समय कम दिया है . सादर .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 23, 2015 at 2:12pm

आदरणीय मिथिलेश जी ..आपके मशविरे पर अमल अवश्य करूंगा ..रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 23, 2015 at 2:11pm

आदरणीय श्याम नारायण जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 23, 2015 at 2:10pm

आदरणीय समर कबीर जी ..रचना पर प्रोत्साहन के लिए तहे दिल धन्यवाद ..आपके मशविरे पर मैं अवश्य ध्यान दूंगा ..मेरा आशय सिर्फ इतना था की आजकल जिस तरह से मासूम बच्चे अपहृत हो रहे हैं वो भी उस समाज में जो सभ्य होने का दावा करता है हम इस सफ़ेद पोशो पर भरोसा कर लेते हैं और धोखा खा जाते हैं , इंसान से लगते शैतानो हम पहचान नहीं पा रहे हैं ,,मेरा ऐसा सोचना था जो शायद सही नहीं है ..आप इस पर मुझे कोई मशविरा देंगे तो मुझे बेहद खुशी होगी / सादर 

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