मौसा, मौसी, ताऊ, फूफा
दुल्हे के सब साथी
बज रहे हैं गाजे बाजे
नाच रहे बाराती.
मेट्रो सी चमक रही
दिल्ली वाली भाभी
चक्करघिन्नी सी घूमे अम्मा
टांग कमर में चाभी
घुटनों का दर्द छुपाये
देख सभी को मुस्काती
नई सूट पहन कर भैया,
नाश्ते का पैकेट बाँट रहा
अपने लिए भी कोई
कटरीना, करीना छांट रहा
लहंगा चोली पहन के छोटी
घूमती है इतराती
जनक जीवन की मुश्किल बेला
विदा हो रही सीता
भीतर में कुछ टूट रहा
भर गयी है रिक्तता
पत्थर सी आँखों में
जल बुँदे बहती आती ..
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी .... आपकी सलाह उत्तम है ....
आ॰ गिरिराज भण्डारी जी आपका धन्यवाद मान्यवर.... मैंने इसे एक नवगीत की तरह लिखा है ... पता नहीं कितना खरा उतरा है ...
आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी आपका धन्यवाद मान्यवर ॥
आयोजन विशेष के आलोक में भारतीय जन-मानस की मनोदशा और भावनाओं का बड़ा ही सुन्दर चित्र खींचा है आपने, आदरणीय नीरज कुमार नीर जी..
वैसे शिल्प पर आप तनिक आग्रही हों तो रचना हर तरह से श्रेष्ठ होगी.
हार्दिक शुभेच्छाएँ.
आदरणीय नीरज भाई ,बहुत सुन्दर चित्र खींचा है आपने , मज़ा आ गया ॥ आपकी रचना सार छंद के बहुत पास है , एक दो मात्रा इधर उधर कर के आप सार छंद मे भी रचना को बदल सकते हैं ॥ आपको हार्दिक बधाई रचना के लिये ॥
बढ़िया चित्र खींचा है आपने !
Dr. Vijai Shanker जी आपका सादर आभार आदरणीय
आ ॰ मिथिलेश जी आपका आभार
सादर आभार आदरणीय नेहा जी ....
हार्दिक आभार भाई जितेंद्र जी ...
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