धरती के सीने में
अमृत छलकता है
धरती के ऊपर पानी है
अन्दर भी पानी है
ये धरती की मेहेरबानी है
कि बादल में पानी है
बादल तरसते हैं
तो धरती अपना पानी
नभ तक पहुंचा
उनकी प्यास बुझाती है
बादल बरस कर
एहसान नहीं करते
सिर्फ़ बिन सूद
कर्ज चुकाते हैं
क्यूंकि पानी तो वो
धरती से ही पाते हैं
फिर भी धरती पर गरजते हैं
बिजली गिराते हैं
जहाँ से जीवन पाते हैं
उसी को सताते हैं
जननी का हाल
कुछ ऐसा ही बताया था
परमार्थ का बीज बोया तो
फल स्वार्थ का उग आया था !!
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार ...सादर
आ० सेठी जी
सुन्दर रचना i सादर .
आदरणीय Samar kabeer जी सराहना हेतु बहुत बहुत आभार...सादर
आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi" जी आपकी उपस्थिति और सराहना के लिये आभारी हूँ ...सादर
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार...सादर
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी पसंदगी के लिये आभार ...सादर
आदरणीय shree suneel जी हार्दिक आभार .....सादर
आदरणीय Shyam Narain Verma जी बहुत बहुत धन्यवाद ...सादर
//परमार्थ का बीज बोया तो
फल स्वार्थ का उग आया था//
वाह वाह, बहुत ही प्यारी रचना हुई है, सब कहानी तो पानी की है, पानी हो तो समस्या, पानी नहीं हो तो समस्या. सुन्दर अभिव्यक्ति पर बधाई आदरणीय मोहन सेठी जी .
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