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देह में तृष्णा के सागर
रेशम में ढकी गागर
इत्र से दबी गंध
लहू के धब्बों में
धुन्दलाया चेहरा
मुखोटों के पीछे
छिपाया मोहरा
न कोई मंजिल
ना कोई पहचान
बैठ ऊँचे मचान पर
ढूंढे नये आसमान
बे-माईने वक़्त का ये जहान
प्रेम परिभाषा ढूँढता वासना में
तम के घेरे में घिरा इंसान !!

******************************************

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 3, 2015 at 11:23am

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आप की उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिये आभार ...सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 30, 2015 at 1:27pm

अ० रचना सुंदर बन पड़ी है .

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 29, 2015 at 6:21am

आदरणीय  Er. Ganesh Jee "Bagi" जी हार्दिक अभिनंदन एवं आभार ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 29, 2015 at 6:20am

आदरणीय vijay nikore जी धन्यवाद पसंदगी हेतु ...सादर 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 29, 2015 at 6:19am

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार ...सादर 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 28, 2015 at 11:16pm

रचना अच्छी हुई है आदरणीय मोहन सेठी जी, बधाई स्वीकार करें.

Comment by vijay nikore on April 28, 2015 at 4:20pm

 सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 28, 2015 at 8:54am

बहुत सटीक चित्रण ...बधाई 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 28, 2015 at 7:52am

आदरणीय shree suneel जी आपकी सकारात्मक टिप्पणी पाकर हृदय प्रसन्न हुआ .... बहुत बहुत आभार

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 28, 2015 at 7:51am

आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार...सादर 

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