देह में तृष्णा के सागर
रेशम में ढकी गागर
इत्र से दबी गंध
लहू के धब्बों में
धुन्दलाया चेहरा
मुखोटों के पीछे
छिपाया मोहरा
न कोई मंजिल
ना कोई पहचान
बैठ ऊँचे मचान पर
ढूंढे नये आसमान
बे-माईने वक़्त का ये जहान
प्रेम परिभाषा ढूँढता वासना में
तम के घेरे में घिरा इंसान !!
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आप की उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिये आभार ...सादर
अ० रचना सुंदर बन पड़ी है .
आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi" जी हार्दिक अभिनंदन एवं आभार ...सादर
आदरणीय vijay nikore जी धन्यवाद पसंदगी हेतु ...सादर
आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार ...सादर
रचना अच्छी हुई है आदरणीय मोहन सेठी जी, बधाई स्वीकार करें.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई।
बहुत सटीक चित्रण ...बधाई
आदरणीय shree suneel जी आपकी सकारात्मक टिप्पणी पाकर हृदय प्रसन्न हुआ .... बहुत बहुत आभार
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार...सादर
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