For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बचपन में
हजार बुरी बलाओं पर 
पर भारी था
मेरी माँ का टोटका
माँ के हाथों से
माथे पर छोटा सा
काला टीका लगते ही
भयमुक्त हो जाता था 
एक असीम ताकत 
दे जाता था मन को
वो ममता में लिपटा 
माँ का टोटका
अब तो मैंने कैसे कैसे 
कृत्यों से कर लिया है
पूरा मुँह काला
मगर फिर भी 
भय से व्याप्त मन 
हमेशा व्याकुल रहता है

मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा



Views: 683

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by umesh katara on May 2, 2015 at 5:25pm

आदरणीय Saurabh Pandey जी मैंने आपकी प्रतिक्रिया को अन्यथा कतई नहीं लिया है गौर से पढ़ा और समझा है आभार 
मगर सर 
मैंने इस कविता के पहले हिस्से में
माँ के छोटे से काले टीके की ताकत को दिखाया है 
और दूसरे हिस्से में 
पूरा मूँह काला होने पर भी 
भय की स्थिति से पीडित होना बताया है
ऐसी स्थिति में 
माँ के टीके की ताकत की तुलना 
पूरा मुँह काला करने से की है
इसलिये 
मगर फिर भी 
लिखा है 
आप कतई अन्यथा न लें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2015 at 12:12pm

आदरणीय उमेश कटाराजी, आपको मेरी प्रतिक्रिया में ऐसा अनूठापन क्या लगा है ? या, प्रस्तुत रचनाकर्म की समृद्धि हेतु मेरी सहयोगात्मक एवं आत्मीय सलाह आपको अपने रचनाकर्म पर अतिक्रमण लगी है ?
आदरणीय, मुझे भी जानने की उत्सुकता है. अन्यथा, इस मंच पर प्रतिक्रियाओं की ऐसी ही परिपाटी रही है. यदि सुझाव रचनाकार को अतुकान्त और अन्यथा लगे, तो हम सदस्य उसे बलात मनवाने में कोई रुचि नहीं रखते.
सादर

Comment by umesh katara on May 2, 2015 at 11:29am

आदरणीय shree suneel जी आपको रचना पसन्द आई आपका आभार

Comment by umesh katara on May 2, 2015 at 11:28am

आदरणीया भावना तिवारी जी आपको रचना पसन्द आई आभार

Comment by umesh katara on May 2, 2015 at 11:27am

आदरणीय Saurabh Pandey जी आपकी अनूठी प्रतिक्रिया के लिये तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2015 at 9:28am

आदरणीय उमेश कटाराजी, आपकी प्रस्तुति के भावशब्द सरल शब्दों में हैं और सीधे हृदय में उतरते चले जाते हैं. इस अत्यंत भावमय प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ. 

एक बात संप्रेषणीयता के लिहाज से अवश्य साझा करना चाहूँगा. शायद आप भी उसे अनुमोदित करें या मुझे बताइयेगा, यदि मैं गलत हूँ.

अब तो मैंने कैसे कैसे
कृत्यों से कर लिया है
पूरा मुँह काला
मगर फिर भी
भय से व्याप्त मन
हमेशा व्याकुल रहता है

इस भावशब्द में ’कैसे-कैसे’ की जगह ’अपने’ तथा ’मगर फिर भी’ की जगह ’और’ लिखें. शायद कहन में व्यापी लाक्षणिकता रचना के लिए एक स्तर आगे बढ़ निखर जाने का कारण बन जाये.
अर्थात,
अब तो मैंने अपने  
कृत्यों से कर लिया है
पूरा मुँह काला
और

भय से व्याप्त मन
हमेशा व्याकुल रहता है

शुभेच्छाएँ

Comment by shree suneel on May 1, 2015 at 11:57pm
क्या बात! आदरणीय उमेश कटारा जी, इस सुन्दर कविता के लिए बधाई.
Comment by भावना तिवारी on May 1, 2015 at 11:44pm

वाह ...कुछ पंक्तियों में आज की कुटिलताओं का समावेश और उससे व्याप्त भय का चित्र ..!!

Comment by umesh katara on May 1, 2015 at 9:57pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपको रचना पसन्द आयी इसके लिये तहेदिल से आभारी हूँ

Comment by umesh katara on May 1, 2015 at 9:56pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी आपको रचना पसन्द आयी इसके लिये तहेदिल से आभारी हूँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service