बचपन में
हजार बुरी बलाओं पर
पर भारी था
मेरी माँ का टोटका
माँ के हाथों से
माथे पर छोटा सा
काला टीका लगते ही
भयमुक्त हो जाता था
एक असीम ताकत
दे जाता था मन को
वो ममता में लिपटा
माँ का टोटका
अब तो मैंने कैसे कैसे
कृत्यों से कर लिया है
पूरा मुँह काला
मगर फिर भी
भय से व्याप्त मन
हमेशा व्याकुल रहता है
मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा
Comment
आदरणीय Saurabh Pandey जी मैंने आपकी प्रतिक्रिया को अन्यथा कतई नहीं लिया है गौर से पढ़ा और समझा है आभार
मगर सर
मैंने इस कविता के पहले हिस्से में
माँ के छोटे से काले टीके की ताकत को दिखाया है
और दूसरे हिस्से में
पूरा मूँह काला होने पर भी
भय की स्थिति से पीडित होना बताया है
ऐसी स्थिति में
माँ के टीके की ताकत की तुलना
पूरा मुँह काला करने से की है
इसलिये
मगर फिर भी
लिखा है
आप कतई अन्यथा न लें
आदरणीय उमेश कटाराजी, आपको मेरी प्रतिक्रिया में ऐसा अनूठापन क्या लगा है ? या, प्रस्तुत रचनाकर्म की समृद्धि हेतु मेरी सहयोगात्मक एवं आत्मीय सलाह आपको अपने रचनाकर्म पर अतिक्रमण लगी है ?
आदरणीय, मुझे भी जानने की उत्सुकता है. अन्यथा, इस मंच पर प्रतिक्रियाओं की ऐसी ही परिपाटी रही है. यदि सुझाव रचनाकार को अतुकान्त और अन्यथा लगे, तो हम सदस्य उसे बलात मनवाने में कोई रुचि नहीं रखते.
सादर
आदरणीय shree suneel जी आपको रचना पसन्द आई आपका आभार
आदरणीया भावना तिवारी जी आपको रचना पसन्द आई आभार
आदरणीय Saurabh Pandey जी आपकी अनूठी प्रतिक्रिया के लिये तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूँ
आदरणीय उमेश कटाराजी, आपकी प्रस्तुति के भावशब्द सरल शब्दों में हैं और सीधे हृदय में उतरते चले जाते हैं. इस अत्यंत भावमय प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.
एक बात संप्रेषणीयता के लिहाज से अवश्य साझा करना चाहूँगा. शायद आप भी उसे अनुमोदित करें या मुझे बताइयेगा, यदि मैं गलत हूँ.
अब तो मैंने कैसे कैसे
कृत्यों से कर लिया है
पूरा मुँह काला
मगर फिर भी
भय से व्याप्त मन
हमेशा व्याकुल रहता है
इस भावशब्द में ’कैसे-कैसे’ की जगह ’अपने’ तथा ’मगर फिर भी’ की जगह ’और’ लिखें. शायद कहन में व्यापी लाक्षणिकता रचना के लिए एक स्तर आगे बढ़ निखर जाने का कारण बन जाये.
अर्थात,
अब तो मैंने अपने
कृत्यों से कर लिया है
पूरा मुँह काला
और
भय से व्याप्त मन
हमेशा व्याकुल रहता है
शुभेच्छाएँ
वाह ...कुछ पंक्तियों में आज की कुटिलताओं का समावेश और उससे व्याप्त भय का चित्र ..!!
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आपको रचना पसन्द आयी इसके लिये तहेदिल से आभारी हूँ
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी आपको रचना पसन्द आयी इसके लिये तहेदिल से आभारी हूँ
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