बचपन में
हजार बुरी बलाओं पर
पर भारी था
मेरी माँ का टोटका
माँ के हाथों से
माथे पर छोटा सा
काला टीका लगते ही
भयमुक्त हो जाता था
एक असीम ताकत
दे जाता था मन को
वो ममता में लिपटा
माँ का टोटका
अब तो मैंने कैसे कैसे
कृत्यों से कर लिया है
पूरा मुँह काला
मगर फिर भी
भय से व्याप्त मन
हमेशा व्याकुल रहता है
मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा
Comment
आदरणीय Samar kabeer जी आपको रचना पसन्द आयी इसके लिये तहेदिल से आभारी हूँ
वाह कटारा जी
अति सुन्दर .
बहुत सुंदर. बहुत खूब आदरणीय उमेश जी. हार्दिक बधाई
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी आपको रचना पसन्द आयी इसके लिये तहेदिल से आभारी हूँ
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