२१२२ २१२२ २१२२
दर्द दिल में ऑसू टपके हैं धरा पे
कुछ लिखूंगा तो लिखूंगा में जफा पे
तुम न होते ज़िन्दगी में गर मेरी तो
मैं कभी कुछ कह नहीं पाता बफा पे
रख के सर जानो पे मरने की तमन्ना
और मत जिंदा मुझे रख तू दवा पे
लोग जिससे खौफ अब भी खा रहे
मुझको आता है तरस अब उस क़ज़ा पे
गोपियों सा प्रेम दिल में जब भी होगा
कृष्ण भागे आयेंगे तेरी सदा पे
पापियों के पाप से धरती हिली जब
थी कहानी दर्द की वादे सवा पे
लूटती हैं जब ह्वायें ही चमन को
क्यूँ नहीं इल्जाम तय होता हवा पे
रूप ये जलवा तुम्हारा जब न होगा
भीड़ गुम होगी जो मरती है हया पे
रुख पे लाली झुकती पलकें देख कर यूं
लुट गए आशू हसीनो की अदा पे
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
भाई जी ग़ज़ल तो खूब कही है
मगर वर्तनी को अशुद्ध करके काफिया नहीं बनाया जा सकता है ...मतला में आसमां ज़बां कवाफ़ी लेने के बाद आगे बंदिश क्या रहेगी यह बताने की कोई ज़रुरत नहीं है ,,,,
बहुत सुंदर गज़ल. दिली दाद कुबूल करे. आ0 आशुतोश भाईजी, सादर
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