For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुमको पत्थर में नहीं मूरत दिखाई दे रही

२१२२       २१२२         २१२२       २१२२

तुमको पत्थर में नहीं मूरत दिखाई दे रही है 

नदियों की कल कल न बांधों में सुनायी दे रही है 

कोई भी इल्जाम मैंने तो लगाया था नहीं फिर 

वो हंसी गुल जाने क्यूँ इतनी सफाई दे रही है 

चीख बस बच्चों कि ही तुमको सुनायी देती है क्यूँ 

ये न देखा लाडले को माँ दवाई दे रही है 

एक रोटी के लिए तरसा दिया उस माँ को तुमने

जो गृहस्ती ज़िंदगी भर की बनायी दे रही है 

काम दुनिया में अकेली माँ ही ये कर सकती है बस 

रोटी भूखे बच्चे को खुद को बचाई दे रही है 

आबरू उस माँ की लूटें आज उसके लाडले ही 

जिसकी वो ममता जमाने से दुहाई दे रही है 

उम्र भर का साथ हमने दोस्तों जिससे था माँगा 

वो हंसी गुल ज़िंदगी भर की जुदाई दे रही है 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 624

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 6, 2015 at 11:34am

काम दुनिया में अकेली माँ ही ये कर सकती है बस 

रोटी भूखे बच्चे को खुद को बचाई दे रही है..

खूबसूरत भाव और एक सत्य लिए  अच्छी गजल के लिए दाद कुबूल करें
भ्रमर ५


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 5, 2015 at 11:33pm

आदरणीय आशुतोष जी शानदार ग़ज़ल हुई है दिल से दाद हाज़िर है 

एक मिसरे पर छोटा सा सुझाव, यदि उचित लगे तो-

उम्र भर का साथ हमने दोस्तों जिससे था माँगा 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 5, 2015 at 11:26pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..मेरी हर रचना को आपका स्नेह और मार्गदर्शन मिलता है ये मेरे लिए बेशकीमती है ..रचना पर आपकी उत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 5, 2015 at 11:24pm

आदरणीय कृष्णा जी ..रचना आपको पसंद आयी यह मेरे लिए बेहद खुसी की बात है सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 5, 2015 at 11:23pm

आदरणीय वीनस जी ...रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से मेरे उत्साह काफी बढ़ा है ..मैं जो कुछ भी लिख पा रहा हूँ उसमे आप सबका मार्गदर्शन और स्नेह शामिल है ..मार्गदर्शन बस यूं ही मिलता रहे इसी कामना के साथ सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2015 at 4:41pm

आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ॥

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 10:59am

काम दुनिया में अकेली माँ ही ये कर सकती है बस 

रोटी भूखे बच्चे को खुद को बचाई दे रही है                 वाह वाह!

बहुत ही सुन्दर गज़ल हुयी है आ० आशुतोष सर,दिली दाद और मुबारकबाद कबूल करें!

Comment by वीनस केसरी on May 5, 2015 at 3:55am

वाह बहुत खूब ...

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 4, 2015 at 4:17pm

आदरणीय समर कबीर जी आप का मार्गदर्शन और स्नेह यूं ही मिलता रहेगा तो लेखन को नयी उर्जा मिलती रहेगी सादर 

Comment by Samar kabeer on May 4, 2015 at 3:18pm
जनाब डा.आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
मैं जनाब निलेश 'नूर' जी की बात से सहमत हूँ |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service