2122 1122 1122 22/112
हुस्न है रब ने तराशा न जुबाँ से कहिये
आप हैं बुझते दिए आप जरा चुप रहिये
आईना देख के बालों की सफेदी देखें
गाल भी लगते हैं अब आपके पंचर पहिये
आप तैराक थे उम्दा ये हकीकत है पर
बाजू कमजोर हवा तेज न उल्टे बहिये
इश्क का भूत नहीं सर से है उतरा माना
पर सही क्या है ये, इस उम्र में खुद ही कहिये ?
लोग जिस मोड़ पे अल्लाह के हो जाते हैं
आप उस मोड़ पे मत दर्दे मुहब्बत सहिये
मौत महबूब तड़प कर के मिलेगी तुझसे
दिल में ले उसकी तड़प आप भी जगते रहिये
मैकदा जाम सुराही हैं सभी मेरे लिए
इस हकीकत पे कभी आप भी तो कुछ कहिये
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ सर ..आपका मशविरा मेरे लिए बहुमूल्य है ..आदरणीय सर ये ग़ज़ल मेरे कालेज जीवन की ग़ज़ल है ..इसे दोस्तों में कई बार सुनाने के कारण इसे प्रकाशित करते समय तकनीकी पक्ष की ध्यान बिलकुल नहीं दे पाया ..कहीं न कहीं चूक मुझसे बार बार हो जाती है इन गलतियों से बचने का प्रयास करूंगा सादर
आदरणीय गोपाल सर ..आपने बिलकुल सही कहा है ..मैं समय नहीं दे पाया ..करिए शब्द गलत है मैं ग़ज़ल पुनः संसोधित करूंगा सादर प्रणाम के साथ
बोलचाल के शब्द रचनाओं में हों लेकिन ग़ज़लों के शब्द इतने भी बोलते-चलते नहीं हुआ करते. वैसे आपने हास्य-ग़ज़ल पर बहुत ही गंभीर प्रयास किया है. इसकेलिए आपकी प्रशंसा अवश्य होनी चाहिये. शायद आपको पहली बार हास्य ग़ज़ल पर हाथ आजमाता हुआ देख रहा हूँ.
हार्दिक बधाइयाँ.
आशुतोष जी
कुछ समय और देना था
इस हकीकत पे कभी आप यकीं तो करिये ------कहिये, रहिये, बहिये में यह 'करिए 'कहाँ से आ गया --- सादर .
आदरणीय वीनस जी ..आपकी प्रतिक्रिया में इंगित मशविरे के अनुरूप सुधार करते हुए भविष्य में इस तरफ बिशेस ध्यान रखूंगा ..का के गलती से लिख गया ..कर के था ......चहिये ..मैं आपका इशारा समझ गया चाहिए होना था पर यह बहर से ख़ारिज होगा ..ये शेर में हटा दूंगा ..उमर की जगह उम्र करते हुए संसोधन करूंगा ...आपके उत्साहित करती...मार्गदर्शन देते और सचेत करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभार ज्ञापित करता हूँ सादर
आदरणीय गिरिराज भाई साब ..का के गलती से हो गया मौत महबूब तड़प ...कर ..के मिलेगी तुझसे...कर की जगह का टाइप हो गया था मैं फिर से अवलोकन करके संसोधन करने का प्रयास करूंगा .आपके मशविरे और स्नेह का आभारी हूँ सादर
आदरणीय विजय सर ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर
खूब ग़ज़ल कही है कुछ बिन्दुओ को साझा करना चाहता हूँ ....
पंचर पहिये वाला शेर मजाहिया हुआ जा रहा है ...उम्र को उम्र जैसा भी निभा सकते हैं उमर करने की क्या ज़रुरत थी ...
का के ने मुझे भी हैरान किया है
मतला बढ़िया बनते बनते रह गया ...
हुस्न है रब ने तराशा न जुबाँ से कहिये
आप हैं बुझते दिए आप जरा चुप रहिये
करी करिए जैसे शब्द आम बोल-चाल में तो हैं मगर सिन्फे-ग़ज़ल जब तक इनसे बच सके बचाए रखिये ...
क्या आपने सोचा कि चहिये जैसे काफिये को कितना स्वीकार किया जाएगा .....
आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है , एक बार ध्यान से सभी अश आ र और पढ़ लीजिये , कुछ समय कम दिये हैं ऐसा लग रहा है । पहले शे र मे दो बार आप है , ठीक नही लग रहा है
छठवें शे र मे ---- का के आपने लिखा है , मै समझ नही पाया । प्रयास के लिये आपको बधाइयाँ ॥
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