सडक एक नदी है।
बस स्टैण्ड एक घाट।
इस नदी मे आदमी बहते हैं। सुबह से शाम तक। शाम से सुबह तक। रात के वक्त यह धीरे धीरे बहती है। और देर रात गये लगभग रुकी रुकी बहती है। पर सुबह से यह अपनी रवानी पे रहती है। चिलकती धूप और भरी बरसात मे भी बहती रहती है । भले यह धीरे धीरे बहे। पर बहती अनवरत रहती है।
सडक एक नदी है इस नदी मे इन्सान बहते हैं। सुबह से शाम बहते हैं। जैसा कि अभी बह रहे हैं।
बहुत से लोग अपने घरों से इस नदी मे कूद जाते हैं। और बहते हुये पार उतर जाते हैं। कुछ लोग अपने अपने जहाज ‘कार व मोटर’ मे बैठ कर इस नदी को पार करते हैं।
जैसे यह चौडा मोड इस नदी का एक घाट है। उसी तरह इस नदी के किनारे किनारे तमाम घाट हैं। लोग इस घाट पे इकठठा होते हैं फिर बहुत सी नावें आती हैं। जिसमे लद के ये लोग पार उतर जाते हैं या दूसरे घाट लग जाते हैं।
मै जब सुबह इस घाट पे अपनी नाव याने की बस पे बैठने के लिये पहुंचूंगा। तब तक न जाने कितनी नावें आके जा चुकी हांगी। न जाने कितने आदमी बह चुके होंगे इस नदी से इस घाट से इस चौडा मोड के घाट से। और न जाने कितने लोग बहने के लिये या उस पार जाने के लिये या कि किसी और घाट से लगने के इंतजार मे होंगे।
सब हबबडी मे होंगे जल्दी मे होंगे।
सिर्फ जल्दी नही होगी तो सडक की इस नदी से लगे चौडा मोड के इस घाट से लगे।
पानी के रेहडी वाले को, जिसकी रेहडी गर्मी मे पानी की टंकी मे तब्दील हो जाती है। और जाडे मे मूंगफली व भेलपूरी के ठेले मे।
नदी के किनारे यह पान वाला भी खडा रहेगा अपनी पान की गुमटी लगाये। इसे भी जल्दी नही रहती बल्कि यह दोनो तो किसी और घाट से बह के यहां आये होते हैं।
तीसरे उस ए टी एम संेटर के चौकीदार को जल्दी नही रहती। कहीं बहने की कहीं जाने की किसी घाट लगने की।
दूर चौडा मोड के चौराहे पे खडे ट्ैफिक पुलिस वाले को भी कोई जल्दी नही रहती बहने की पर वह चाहता है कि बहने वाले जल्दी जल्दी बहते रहें और इसके लिये वह सीटी बजाता रहता है हाथ की पतवार चलाता रहता है।
इसके अलावा भूरे कुत्ते को भी जल्दी नही रहती, यानी की हडबडी नही रहती क्यूं की उसे कहीं आफिस, स्कूल या काम से जाना नही होता है। लिहाजा वह इसी बस स्टैंण्ड के आस पास, नही इस घाट के आस पास जमे कूडे को सूंघता भभोडता रहता है और अगर भरे पेट होगा तो आराम से आते जाते राहगीरों को जीभ निकाल के ताकता रहेगा और पूंछ हिलाता रहेगा। और शायद यह सोचता रहेगा कि तुम लोगों से तो अच्छा मै हूं जिसे कोई हडबडी नही है या कि कहीं भी बह के जाना नही है।
हॉ। इन सब के अलावा एक पागल अधबूढा है जिसे जल्दी नही रहती वो अपने कपडों पे तमाम चीथडे लपेटे ध्ूामता रहता है। कभी कभी राहगीरों से कुछ उल जलूल बक झक करता रहता है। और पान वाले से एक आध बीडी या सिगरेट ले के शहनशाहों की तरह पीता रहता है।
कुछ लोग कहते हैं कि यह चौडा मोड का बस स्टैड जहां बना है और यह जो सडक है यह सब किसी जमाने मे इसके बाप दादों की थी जो मुआवजे मे चली गयी। यह करोडो का इकलौता वारिस था। और इसकी यह दशा इसकी प्रेमिका की वजह से हुयी है जो इसका सारा पैसा ले के किसी और प्रेमी के साथ भाग गयी है।
यह पागल प्रेमी अक्सर इस चौडे घाट का इतिहास भी बताता है।
बहर हाल लोग इसे पागल समझते हैं परे मुझे बातचीत मे पागल नही लगा। हालाकि वह भी अपने आपको ‘हिला हुआ स्टेशन’ मानता है।
पान वाला, रेहडी वाला, चौकीदर कुत्ता पागल और ट्रैफिक वाले के अलावा एक बूढी भिखारन भी इस घाट पे देखी जा सकती है या कि पयी जाती है। जो अपने आप को कभी बिहार तो कभी बंगाल तो कभी उडीसा की बताती है। सुना है उसका लडका उसे तीरथ कराने के लिये ले जा रहा था कि यह अपने बेटे से इसी सडक या कहें नदी के इसी घाट पे यानी की चौडा मोड के घाट पे बिछुड गयी थी। कुछ लोगों का मानना है कि इसका बेटा जान बूझ के अपनी इस बूढी मॉ से पिण्ड छुडाने के लिये यहां छोड के चला गया है। तब से यह यहां भीख मॉग के पेट भरती है। और रात जाने कहां सो रहती है। और दिन भर इस चौडा मोड के स्टैण्ड यानी कि घाट से अगले बस स्टैंड यानी की घाट के बीच मे बहती रहती है। जो कभी कभी किसी बस मे भी चढ जाती है और अगले स्टैड से उतर के फिर वापस आ जाती है। और इस तरह से यह बूढी भिखारन दो घाटों के बीच बहती रहती है। और इसे भी कोई जल्दी नही रहती बहने की।
खैर ...
इन सब के अलावा बस स्टैंण्ड के पास खडे आटो वाले इस इंतजार मे रहते हैं कि कोई तो उनकी नाव मे यानी की स्कूटर मे बैठे और वह भी बहना शुरु कर दें।
अब मै भी चौडा मोड के बस स्टैंड पे, नही नही सडक की नदी के किनारे बने इस घाट पे पहुंच गया हूं। बहने के लिये।
मेरे आने के पहले बहुत से बह चुके हैं। और कुछ बहने के इंतजार मे हैं। इनमे से ज्यादा तर जाने पहचाने चेहरे हैं। जो इसी घाट से रोज नदी पे उतरते है। और दूसरे घाट जा लगते हैं। फिर शाम उस घाट से इस घाट फिर लग जाते हैं।
सुबह का वक्त है सभी हडबडी मे है। हडबडी मे तो शाम को भी होते हैं पर तब वे थके थके से होते हैं। पर बह अब भी रहे होते है। एक द्याट से दूसरे घाट के लिये।
इनमे ये जो छाता लिये बालों मे जूडा बनाये छोटे कद की पर सलोनी सी कुछ कुछ मोटी से लडकी है। यह मुझे अच्छी लगती है जितनी देर यह इस घाट पे अपने बस का या कहें नाव का इंतजार करती है। मै इसे कनखियों से देखा करता हू। यह एक साफटवेयर की कम्पनी मे रिसेप्सनिस्ट है। मै जानता हूं। एक दिन इत्तफाकन उसके आफिस पहुंच गया था। इसने मुझे पहचाना था। मै तो खैर पहचानता ही था। पर इसने मुझसे सिर्फ औपचारिक बात की और मैने भी। पर यह जरुर है कि उस दिन के बाद से कभी नजरे मिल जाती हैं तो ऑखों से और होंठों को हल्का जुम्बिस दे के एक दूसरे को पहचानने की बात करते हैं। बस । बस इतना ही है। परिचय। जबकि मै इस परिचय को और आगे बढाना चाहता हूं पर शायद यह कुछ कुछ मोटी सी सांवली सी और मुझे अच्छी लगने वाली लडकी ऐसा नही चाहती।
खैर इसके जाने के पहले दो लडकियॉ या यूं कहें की सहेलियॉं या यूूूं कह सकते हो कि साथ पढने वाली लडकियां। जो कभी जीन्स टाप मे रहती तो कभी सलवार सूट मे आपस मे हसंती खिलखिलाती आती हैं और चली जाती हैं इनकी कालेज की बस आती है जो अपने वक्त से आ जाती है इन्हे ज्यादा देर इंतजार नही करना पडता जब कि मेेरी चाहत रहती है कि इनकी बस मेरी बस से देर से आया करे ताकि इनकी हंसी सुनते हुये इनकी बाते सुनते हुये इनको निहारते हुय इंतजार का वक्त कट जाये।
खैर इन सब के अलावा एक अधेड और उदास से चेहरे वाली औरत भी आयेगी इसी घाट पे इसी स्टैण्ड पे जो शायद किसी अस्पताल मे नर्स है।
ऐसा नही है कि सर्फ स्त्रियॉ या लडकियॉ ही इस स्टैड पे आती हैं बल्कि वह मोटा सा थुलथूल और अधेड भी आयेगा जो कि पहले पान खायेगा फिर गुटका खरीदेगा फिर स्टैड पे खडा हो के उस उदास औरत को मतलब बेमतलब देखेगा। फिर बस आने पे बैठ के फुर्र हो जायेंगे। वह उदास औरत और वह आदमी देानो कई बार एक ही बस से आते जाते दिखें हैं।
हालाकि आजकल ये उदास औरत कम उदास रहती है। शायद उस अधेड के साथ का असर है। हालाकि हमको इस सब से क्या। हमारी इस कविता से उस औरत की जिंदगी से क्या ?
अक्सर इस घाट पे आने वाले लडके लडकियों और औरतों को देखते रहते हैं। औरतें कहीं और देखती रहती हैं। लडकियां अपने मोबाइल से खेलती रहती हैं। कुछ लडके कान मे इयर फोन लगा के गाना सुनते रहते हैं। और कुछ हम जैसे बेवजह इधर उधर देखते रहते हैं और तमाम होडिंग और साइन बोर्ड पढा करते हैं।
खैर अब मेरी बस आ चुकी है। नही नही नाव आ चुकी है।
जिसमे चढ के अपने घाट चलदूंगा।
कल फिर इसी नदी मे बहने के लिये।
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
bahut bahut aabhar Aditya Kumar jee - sarahnaa ke liye
Sundar Prastuti... Badhai sweekar karen aadarneey shri MUKESH SRIVASTAVA JI
BAHUT BAHUT AABHAAR - ARTICLE PASANDGEE KE LIYE Dr Vijay shanker jee - jee filhaal mai Chaudaa mod ke paas hee rah rahaa hoon -
JEE BAHUT BAHUT AABHAR - AALEKH PASANDGEE KE LIYE Giriraj Bhandari jee
बहुत सुन्दर !! आलेख बहुत रोचक है , आदरणीय मुकेश भाई , दिल्ली बधाई स्वीकार करें ॥
AABHAR MITRA AALEKH PASANDGEE KE LIYE BAHEE Krishna Mishra jee
सडक एक नदी है।
बस स्टैण्ड एक घाट।
सुन्दर आलेख पर बधाई आ० मुकेश इलाहाबादी जी!
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