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एक
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मेरा नाम बिट्टो है,
कल मेरे गाँव का मेला है
सब खुश हैं
मेरी सहेली चुनिया
कह रही थी वह अब की
कान के बुँदे और कंगन लेगी
गुड्डू कह रहा था
वह इस बार बाबू से कह के
मेले में नुमाइश देखेगा
मेरा छुटका भाई
बैट बाल लेगा
अम्मा अपना टूटा तवा बदलेंगी
बाबू कुछ नहीं लेंगे
और मै भी कुछ नहीं लूंगी
क्यों कि हमें मालूम है
उनके पास बहुत ज़्यादा पैसे नही हैं
मै सिर्फ चुपचाप मेला देख के आ जाऊँगी
दो,
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मै बिट्टो
मेरे बाबा दिहाड़ी पे गए हैं
अम्मा भी काम पे गयी है
लोगों के यहाँ चौक बासन करती है
मै घर पे तब तक छुटके (भाई) को सम्हालती हूँ
मै तीन क्लास तक पढ़ी हूँ
पर इस बार मेरी पढ़ाई छुड़ा दी गयी
छुटके को जो सम्भालना रहता है
और माँ के न रहने पर पानी भरना
झाड़ू बुहारू करना होता है
रात बापू कह रहा था
छुटके को अंगरेजी स्कूल में पढ़ाएगा
चाहे जो हो जाए
वैसे मेरा मन भी स्कूल जाने का होता है
पर, तब छुटके को कौन संभालेगा ?
तीन,
---
वैसे तो मेरा नाम बिट्टो है
पर पप्पू मुझे 'मेरी जान' कहता है
मुझे ये अच्छा नहीं लगता
वो देखता भी अजीब तरह से है
मैंने ये बात अम्मा को बताई थी
अम्मा ने मुझी को डांट दिया
'तो तू उसकी और देखती ही क्यूं है ?'
मुझे ये बात बापू से बताने में
शर्म आती है
मै क्या करूँ ?
वैसे पप्पू का 'मेरी जान' कहना अच्छा भी लगता है
पर उसकी नज़रें बड़ी गंदी हैं '
अरे ! मै भी कितनी देर से बातें करने में लगी हूँ
चलूँ झाड़ू बुहारू कर लूँ
वरना अम्मा आ के चिल्लाएँगी
छुटका भी तो उठने वाला है
उठते ही रोयेगा और कुछ खाने को मांगेगा
अच्छा मै चलती हूँ फिर बात करूंगी

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by MUKESH SRIVASTAVA on September 16, 2015 at 12:18pm

bahut bahut aabhar Dr Gopal Narayan Srivastava jee achna pasandge eke liye

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on July 13, 2015 at 12:24pm

aadarneey Dr. Gopal jee bahut bahut aabahr

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 13, 2015 at 9:14am

आदरणीय  मुकेश जी

बहुत ही मार्मिक चित्रण है . बड़े सलीके से आपने अपनी बात कही . आपको बधाई

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