किसने कहा प्रेम अंधा होता है
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किसने कहा प्रेम अंधा होता है
रहा होगा उसी का , जिसने कहा
मेरा तो नहीं है
देखता है सब कुछ
वो महसूस भी कर सकता है
जो दिखाई नहीं देता उसे भी
वो जानता है अपने प्रिय की अच्छाइयाँ और
बुराइयाँ भी
वो ये भी जानता है कि ,
उसका प्रेम, पूर्ण है ,
बह रहा है वो तेज़ पहाड़ी नदी के जैसे , अबाध
साथ मे बह रहे हैं ,
डूब उतर रहे हैं साथ साथ
व्यर्थ की भावनायें भी , कचरों के जैसे
प्रेम के साथ साथ, पर प्रेम से अलग
बिना भीगे उन व्यर्थ की भावनाओं से
जैसे कमल का पत्ता पानी रह के भी गीला नहीं होता
सब कुछ दिख रहा है , महसूस हो रहा है
उसे विश्वास है
सागर के प्रेम की पूर्णता पर भी
वो भी सब कुछ देखते हुये भी
समाहित कर लेगा खुद में, सब कुछ के साथ
क्योंकि प्रेम होता है तो पूर्ण ही होता है
आधा अधूरा तो व्यापार होता हैं
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
किसने कहा प्रेम अंधा होता है
रहा होगा उसी का , जिसने कहा
मेरा तो नहीं है---- वाह !!! बहुत ही सहज भाव में लिखी गयी अद्भुत पंक्तियाँ है ये आदरणीय गिरिराज भंडारी जी। … लाजवाब ! बधाई स्वीकार कीजिये।
आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आपकी प्रतिक्रिया ने रचना का मान बढ़ा दिया , सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।
भाई गिरिराज जी,इस बहुत ही "सच" और खूबसूरत रचना के लिए हार्दिक बधाई।
आदरणीय लक्ष्मण भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥
आदरणीया माला जी , आपका बहुत शुक्रिया ॥
आदरणीय श्री सुनील भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभार ।
बहुत खूब | जिसने भी यह कहावत बनाई -"प्रेम अंधा होता है, उसमें भी तथ्य छुपें है, प्रेम में न उम्र का बंधन है, प्यार किया-----तो फिर परी क्या चीज है, आद जुमले प्रेम को अंधा बताने की बात पुष्ट करते है | आपका अंदाज भी भाया , क्योकि सबके लिए प्रेम अंधा नहीं है | दरअसल प्रेम प्यार व्यक्तिशः और वैयक्तिक मामला है | प्रेम तो वह चीज है जिसमे डूब जाना होता है | सुंदर सोच लिए रची रचना के लिए हार्दिक बधाई भाई श्री गिरिर्राज भंडारी जी |
आदरणीया महिमा जी , सराहना के लिये आपका आभार ।
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