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मेरे दिल के हर इक कोने से पोशीदा अलम निकले
सो जो अल्फ़ाज़ निकले दिल से बाहर वो भी नम निकले
गुजश्ता* वक्त का कोई निशाँ बाकी नहीं लेकिन *गुज़रा हुआ
उसी की जुस्तजू में दिल से खूँ ही दम ब दम निकले
किया जिस वास्ते किस्मत से शिकवा मैंने ऐ ग़मख़्वार
हकीकत में वो सारे ज़ख्म तो तेरे सितम निकले
किसी खूँख्वार* को मतलब नहीं ईमानो दीं से कुछ *रक्त पिपासु
तू आँखें खोल के देखे तो फिर तेरा वहम निकले
मैं ख़ूगर* इस कदर तन्हाइयों का हो गया यारो *आदी
बड़ी मुश्किल से बाहर आज मेरे ये कदम निकले
वफा तुमने निभाई जो रवायत तोड़कर ऐ दोस्त
तुम्हारे वास्ते हर कायदे को भूल हम निकले
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय जितेन्द्र जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय निलेश भैया आपका बहुत बहुत शुक्रिया महत्वपूर्ण जानकारी साझा करने के लिये। ग़ज़ल को लेकर आपकी सोच एवं समझ वाकई काबिले तारीफ है आपने चर्चा में सक्रियता दिखाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय समर साहब चर्चा में शिरकत करने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय सौरभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मेरी रचना को समय दिया एवं सराहा
आदरणीय श्री सुनील जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया रचना को समय देने के लिये
वैसे शिज्जू भाई
वफा तुमने निभाई जो रवायत तोड़कर ऐ दोस्त
सो तेरे वास्ते हर कायदे को भूल हम निकले... इस शेर में शातुर्गुरबा जैसा कुछ झलक रहा है (तुम-तेरे)
सादर
बहुत खूबसूरत अशआर कहे, आदरणीय शिज्जू जी.
वफा तुमने निभाई जो रवायत तोड़कर ऐ दोस्त
सो तेरे वास्ते हर कायदे को भूल हम निकले.....यह शेर बहुत पसंद आया, तहे दिल से बधाई स्वीकारें
मेरा सिर्फ इतना निवेदन है कि सिर्फ डिक्शनरी में दिए अर्थ पर शायरी को न बांधिये. डिक्शनरी का अपना महत्व है जिसे कतई कम कर के नही देखा जा सकता लेकिन किसी के शेर के भाव को इसलिए नकार देना कि उसमे दिए शब्द का अर्थ डिक्शनरी अर्थ से नहीं मिलता ये ज़्यादती है.
आज उर्दू अदब में rekhta.org से बड़ी कोई website नहीं है जहाँ एक से एक आलिम आते हैं और उनके ख़ज़ाने को समृद्ध करते हैं..नीचे उसी साईट का स्क्रीन शॉट संलग्न है.
शायरी कहे गए शब्दों को अपने माहौल से जोड़ने का भी नाम है ..हर बार यदी हरम को काबे से जोड़ा जाने लगे तो दैर-ओ-हरम ये टर्म ही अप्रासंगिक लगती है क्यूँ की दैर कोई स्पेसिफिक मंदिर नहीं है जबकी हरम स्पेसिफिक जगह है. फिर तो बद्री-ओ-हरम या केदार-ओ- हरम या कामख्या-ओ-हरम कहना सही होगा. यानी तुलना या साथ तो नॉन स्पेसिफिक का है जो आपके आसपास हैं दैर-ओ-हरम
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अयाज़ झाँसवी साहब का एक शेर देखें
न शिवाले न कलीसा न हरम झूठे हैं
बस यही सच है कि तुम झूठे हो हम झूठे हैं ...
यहाँ भी कई कलीसा, कई शिवाले और हरम सिर्फ एक ..बहुत नाइंसाफ़ी हुई ये तो
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