उस तंग कमरे में ,सालों से बीमार चल रहा हरिया रोज मृत्यु की कामना किया करता था I पड़ा पड़ा कभी बहू कभी बेटा ,नाती पोतों को मिलने की गुहार लगाता रहता I उसके जर्जर ,क्षीण होती काया सबके लिए दुखदायी होती जा रही थी ,स्वयं उसके लिए भी I आखिर कार मृत्यु को उस पर दया आ ही गयी ,आ गयी उसको एक दिन लिवा जाने !! लेकिन यह क्या ? दिन रात मृत्यु की कामना करने वाला हरिया ,साक्षात उसे सामने देख गिड़गिड़ाया -" तनिक छोटका बिटवा को देख लेने दियो ,फिर चलत हैं " I
मृत्यु भी मुस्कुरा पड़ी पल भर को -' सच !! जीवन की प्यास कभी नही बुझती !! '
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मीना पाण्डेय
बिहार
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
लोक जीवन के बतकूचन शाब्दिक हो कर और सुखद लगते हैं.
इस प्रयास हेतु हार्दिक बधाइयाँ..
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