For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस्लाह हेतु ..बड़ी बहर पे एक ग़ज़ल

२१२/ २१२/ २१२/ २१२// २१२/ २१२/ २१२/ २१२  
हर तरफ भागती दौडती ज़िन्दगी बेसबब घूमती इक घड़ी की तरह
हमसफ़र है वही और राहें वही, मंज़िले हैं मगर अजनबी की तरह. 
.
आज के बीज से उगते कल के लिए मुझ को जाना पड़ेगा तुम्हे छोड़कर
तुम भी गुमसुम सी हो मैं भी ख़ामोश हूँ लम्हा लम्हा लगे है सदी की तरह
.
श्याम की संगिनी बाँसुरी ही रही, प्रीत की रीत भी आज तक है यही
कर्म की राह ने प्रेम को तज दिया, राधिका रह गयी बावरी की तरह.
.     
ये अलग बात है उनसे बिछड़े हुए जाने कितने बरस हो गए हैं मगर
ज़ह’न में याद उनकी हमेशा रही ख़ुशबुओं की तरह गुदगुदी की तरह.  
.
सुब’ह से शाम तक शाम से रात तक खेल चलता रहा हम भी चलते रहे
थक गए गिर पड़े उठ के चलने लगे ज़िन्दगी कट गयी नौकरी की तरह
.  
बाल पकने लगे झुर्रियाँ पड़ गयी मैं बदल सा गया वो बदल सी गयी
पर मेरी याद की डायरी में कहीं आज भी दर्ज है षोडशी की तरह.
.
बात वो मेरी कोई भी सुनता नहीं आह उस तक मेरी कोई पहुँची नहीं
क्या ख़ुदा इस जहाँ में रहा ही नहीं या ख़ुदा भी हुआ आदमी की तरह.
.
नूर 
मौलिक अप्रकाशित 

Views: 920

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on May 4, 2015 at 2:41pm
आप ठीक कहते है सर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 2:04pm

शुक्रिया आ. मनोज जी पुन: एक बार आप इस ग़ज़ल पर आए.
दरअसल हमें भ्रम होता है कि हम ग़ज़ल कहते हैं लेकिन होता ठीक विपरीत है. दरअसल ग़ज़ल हमें कह रही होती है. इसके माध्यम से हम अभिव्यक्त होते है ..मैं भी अपने घर से दूर कार्यरत हूँ और जिस दिन वापस काम पर लौटना होता है उसके पहले के लम्हे जो भाव उत्पन्न करते है वही शायद यहाँ अभिव्यक्त हुए हैं.
.

कभी रंजिश निभाता हूँ, कभी चाहत पिरोता हूँ,
ग़ज़ल पढ़ लेती है मुझको, जहाँ जैसा मै होता हूँ.
निलेश 'नूर' 



Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:59pm

शुक्रिया आ. संतलाल करुण जी.. आप जैसे वरिष्ठ गुरुजनों की दाद प्रेरणा देती है 
सदर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:58pm

शुक्रिया आ. मोहन जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:58pm

शुक्रिया आ. मिथिलेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:57pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर 
पिछले कुछ समय से, जब से ग़ज़ल सीखना शुरू किया है, आपका मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन दोनों ही इस सफ़र में हमसफ़र रहे हैं. आपको बहुत बहुत धन्यवाद. स्नेह बनाए रखिये
सादर  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:56pm

शुक्रिया आ. वीनस जी ..
आपसे दाद पाना मेरे लिए बहुत मायने रखता हैं
सादर  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:55pm

शुक्रिया आ. श्री सुनील जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:55pm

शुक्रिया आ. गिरिराज जी 

Comment by मनोज अहसास on May 4, 2015 at 10:56am
नमस्कार सर
पुनः आपको प्रणाम करता हु
ग़ज़ल को कई बार पढ़ा
ऐसा लगा जैसे मेरे दिल का दर्द आपकी कलम से निकला है
मै घर से दूर हु आजकल
और मेरे सारे हालात ग़ज़ल।में है
पढ़कर लगा जैसे दर्द को तस्वीर बना दिया गया हो
इसलिए दुबारा प्रतिक्रिया दे रहा हूँ
बहुत बहुत बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
15 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
44 minutes ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
57 minutes ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
2 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service