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इस्लाह हेतु ..बड़ी बहर पे एक ग़ज़ल

२१२/ २१२/ २१२/ २१२// २१२/ २१२/ २१२/ २१२  
हर तरफ भागती दौडती ज़िन्दगी बेसबब घूमती इक घड़ी की तरह
हमसफ़र है वही और राहें वही, मंज़िले हैं मगर अजनबी की तरह. 
.
आज के बीज से उगते कल के लिए मुझ को जाना पड़ेगा तुम्हे छोड़कर
तुम भी गुमसुम सी हो मैं भी ख़ामोश हूँ लम्हा लम्हा लगे है सदी की तरह
.
श्याम की संगिनी बाँसुरी ही रही, प्रीत की रीत भी आज तक है यही
कर्म की राह ने प्रेम को तज दिया, राधिका रह गयी बावरी की तरह.
.     
ये अलग बात है उनसे बिछड़े हुए जाने कितने बरस हो गए हैं मगर
ज़ह’न में याद उनकी हमेशा रही ख़ुशबुओं की तरह गुदगुदी की तरह.  
.
सुब’ह से शाम तक शाम से रात तक खेल चलता रहा हम भी चलते रहे
थक गए गिर पड़े उठ के चलने लगे ज़िन्दगी कट गयी नौकरी की तरह
.  
बाल पकने लगे झुर्रियाँ पड़ गयी मैं बदल सा गया वो बदल सी गयी
पर मेरी याद की डायरी में कहीं आज भी दर्ज है षोडशी की तरह.
.
बात वो मेरी कोई भी सुनता नहीं आह उस तक मेरी कोई पहुँची नहीं
क्या ख़ुदा इस जहाँ में रहा ही नहीं या ख़ुदा भी हुआ आदमी की तरह.
.
नूर 
मौलिक अप्रकाशित 

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Comment by मनोज अहसास on May 4, 2015 at 2:41pm
आप ठीक कहते है सर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 2:04pm

शुक्रिया आ. मनोज जी पुन: एक बार आप इस ग़ज़ल पर आए.
दरअसल हमें भ्रम होता है कि हम ग़ज़ल कहते हैं लेकिन होता ठीक विपरीत है. दरअसल ग़ज़ल हमें कह रही होती है. इसके माध्यम से हम अभिव्यक्त होते है ..मैं भी अपने घर से दूर कार्यरत हूँ और जिस दिन वापस काम पर लौटना होता है उसके पहले के लम्हे जो भाव उत्पन्न करते है वही शायद यहाँ अभिव्यक्त हुए हैं.
.

कभी रंजिश निभाता हूँ, कभी चाहत पिरोता हूँ,
ग़ज़ल पढ़ लेती है मुझको, जहाँ जैसा मै होता हूँ.
निलेश 'नूर' 



Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:59pm

शुक्रिया आ. संतलाल करुण जी.. आप जैसे वरिष्ठ गुरुजनों की दाद प्रेरणा देती है 
सदर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:58pm

शुक्रिया आ. मोहन जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:58pm

शुक्रिया आ. मिथिलेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:57pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर 
पिछले कुछ समय से, जब से ग़ज़ल सीखना शुरू किया है, आपका मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन दोनों ही इस सफ़र में हमसफ़र रहे हैं. आपको बहुत बहुत धन्यवाद. स्नेह बनाए रखिये
सादर  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:56pm

शुक्रिया आ. वीनस जी ..
आपसे दाद पाना मेरे लिए बहुत मायने रखता हैं
सादर  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:55pm

शुक्रिया आ. श्री सुनील जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2015 at 1:55pm

शुक्रिया आ. गिरिराज जी 

Comment by मनोज अहसास on May 4, 2015 at 10:56am
नमस्कार सर
पुनः आपको प्रणाम करता हु
ग़ज़ल को कई बार पढ़ा
ऐसा लगा जैसे मेरे दिल का दर्द आपकी कलम से निकला है
मै घर से दूर हु आजकल
और मेरे सारे हालात ग़ज़ल।में है
पढ़कर लगा जैसे दर्द को तस्वीर बना दिया गया हो
इसलिए दुबारा प्रतिक्रिया दे रहा हूँ
बहुत बहुत बहुत बधाई

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