For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-नूर : आसमां क्या ख़बर नहीं रखता

२१२२/१२१२/२२ (११२)

वह’म है वो नज़र नहीं रखता
आसमां क्या ख़बर नहीं रखता.  
.
वो मकीं सब के दिल में रहता है
आप कहते हैं घर नहीं रखता.
.
है मुअय्यन हर एक काम उसका
कुछ इधर का उधर नहीं रखता.

अपने दर पे बुलाना चाहे अगर
तब खुला कोई दर नहीं रखता.
.
ख़ामुशी अर्श तक पहुँचती है 
लफ्ज़ ऐसा असर नहीं रखता. 
.
तेरी हर साँस साँस मुखबिर है
तू ही ख़ुद पे नज़र नहीं रखता.
.
दिल ही दिल में हमेशा घुटता है
क्यूँ कोई चारगर नहीं रखता.
.
मंज़िलें आँखों में बसाई क्यूँ
पाँव में जब सफ़र नहीं रखता
.
दिल ये कहता है बोल दूँ उसको
ज़ह्न अगरचे जिगर नहीं रखता.  
.
निलेश 'नूर'
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 782

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on May 8, 2015 at 1:40am

आपकी मुहब्बत है ..जर्रे को नवाज़ते हैं ...
मैं भी सीख रहा हूँ
बस आपसे कुछ पहले से ...

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2015 at 8:16am

शुक्रिया आ. धर्मेन्द्र जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 7, 2015 at 8:15am

शुक्रिया आ. वीनस जी 
हर साँस साँस पर अब आपने कन्विंस कर लिया है मुझे 
शेर अब यूँ पढ़िए 
.
जब कि हर एक साँस मुखबिर है 
फिर भी ख़ुद की ख़बर नहीं रखता. 
.
आपकी एक बात पर सख्त ऐतराज़ है ."आप चाहें तो किसी उस्ताद से मशविरा ले लें" .. जिस दिन बहर सीखना शुरू किया था उस दिन online आपके कुछ notes मिले थे जिन्हें प्रिंट कर के फ़ाइल कर के रखे हैं. उसी से पढ़ पढ़ कर कहना सीख रहा हूँ. 
आप ख़ुद को उस्ताद न मानें मैं तो आप ही से सीख रहा हूँ ....वैसे भी छात्र का एकाधिकार है कि वो किसे उस्ताद मानें ..किसे न मानें. एक आ. डॉ ललित कुमार सिंह  सर हैं जिन्होंने "ग़ज़ल ऐसे लिखे"  नाम से क़िताब भी लिखी है. उनसे फ़ेसबुक के माध्यम से चैट बॉक्स में कुछ ज्ञान मिलता रहता था लेकिन पिछले कुछ दिनों से वो अपनी नई क़िताब में व्यस्त हैं सो फ़ेसबुक अकाउंट डीएक्टिवेट किये हुए हैं.
अब इस मंच के अलावा किससे पूछने जाऊं ...यहाँ पोस्ट ही इसलिए करता हूँ कि आप से  और अन्य गुनीजनों से मार्गदर्शन प्राप्त हो सके. आप सब यूँ हीं राह दिखाते रहिये ..
सादर 

Comment by वीनस केसरी on May 7, 2015 at 1:08am

भाई जी आपने सुझावों पर विचार किया इसके लिए धन्यवाद

आसमां को अन्य प्रकार से बिम्बित करने पर मुझे ऐतराज़ नहीं है बस जो पता था उसे साझा किया ,,,, और जहाँ तक मुझे पता है आसमां को दुश्मन के लिए आजादी के पहले ही बिम्बित करना शुरू हुआ, ग़ालिब साहब के समय क्या मामला था मुझे नहीं पता ...
फिर भी आपने जो शेर कोट किया है शमीम साहब के शेर में तो ईश्वर को बिम्बित माना जा सकता है मगर ग़ालिब के शेर में आसमां शब्द ईश्वर के लिए प्रयुक्त नहीं लग रहा ...

हम कहाँ के दाना थे किस हुनर में यकता थे 
बे-सबब हुआ "ग़ालिब" दुश्मन आसमां अपना.

ख़ुदा का दुश्मन हो जाना ...ये बात अटपटी लगती है ... हाँ राजा या किसी अमीर या ओहदेदार के लिए ये बात सटीक बैठती है ....
आपका मतला मुकम्मल है इसी लिए तो उसकी तारीफ़ भी की थी ...


मुजरिम है सोच-सोच, गुनहगार साँस-साँस

इस मिसरे में सांस सांस प्रयोग को स्वीकार किया जा सकता है मगर आपने अपने शेर में हर शब्द का प्रयोग किया है 
तेरी हर सांस में इंसान की प्रत्येक सांस समाहित है उसके बाद अलग से कोई सांस नहीं बचती इसलिए उसके बाद सांस शब्द के प्रयोग का कोई औचित्य नहीं है
और मैंने भी यही कहा था = तेरी हर साँस के बाद अगले शब्द सांस का क्या औचित्य है

/// दिल ही दिल में घुटना ठीक वैसा है जैसा मन ही मन में चाहना  ///

नहीं भाई जी, ऐसा नहीं है क्योकि दिल ही दिल में घुटना सही जुमला नहीं है आप चाहें तो किसी उस्ताद से मशविरा ले लें ...

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 6, 2015 at 3:30pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है नूर साहब। दाद कुबूलें

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 2:02pm

शुक्रिया आ. डॉ साहब. 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 6, 2015 at 1:25pm

आदरणीय नूर जी ..कमाल की एक और शसक्त ग़ज़ल ..

ख़ामुशी अर्श तक पहुँचती है 
लफ्ज़ ऐसा असर नहीं रखता.....लाजबाब 

मंज़िलें आँखों में बसाई क्यूँ 
पाँव में जब सफ़र नहीं रखता...ताजगी से भरा हुआ ..क्या जबरदस्त सोच 

कोइ भी शेर कमतर नहीं फिर भी ये दो तो मुझे कितने पसंद आये मेरे लिए कहना मुश्किल है हार्दिक बधाई के साथ सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 9:25am

वो ख़ुदा.....शेर अब यूँ पढ़ा जाए 
.
वो मकीं सब के दिल में रहता है 
आप कहते हैं घर नहीं रखता. 
.
इस सोचने के क्रम में एक शेर और बन गया है..उसे भी ऐड किये लेता हूँ.
.
ख़ामुशी अर्श तक पहुँचती है 
लफ्ज़ ऐसा असर नहीं रखता. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 8:46am

वो का मसअला ऑफिस पहुँच के देखता हूँ :))

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 8:39am

ये शेर यूँ हो गया अब 
.
दिल ये कहता है बोल दूँ उसको 

ज़ह्न अगरचे जिगर नहीं रखता.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..दूध…"
15 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
Monday
Shabla Arora updated their profile
Monday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"वाह, साधु-साधु ऐसी मुखर परिचर्चा वर्षों बाद किसी आयोजन में संभव हो पायी है, आदरणीय. ऐसी परिचर्चाएँ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service