पग पग तेरा मान करूँ
अपमान मेरा मत कर तू भी
एक दिन तो सबको मरना है
अभिमान जरा मत कर तू भी
जीवन की आँख मिचौली में
ठहरूँ पल भर मैं पलक तले
क्या है भरोसा कल सुबह तक
कौन बचे और कौन जले
कौन मिलेगा बीच सफर में
साथ मेरे ही चलता जा
आयू भी आधी निकल गयी
हाथ मले तो मलता जा
इक दूजे को देते रहें है
जाने क्यों हम गम दोनों
रेल की पटरी जैसे चलती
साथ चले हैं हम दोनों
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आभार
कटारा जी
अच्छी प्रस्तुति है .
आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी आभार
आदरणीय Shyam Narain Verma जी आभार
आदरणीय Sushil Sarna जी आभार
आंतरिक अंतर्द्वंद का सुंदर चित्रण हुआ आदरणीय आपकी इस रचना में। … हार्दिक बधाई सुंदर प्रस्तुति हेतु।
बधाई , इस प्रस्तुति पर , सादर। |
रेल की पटरी जैसे चलती
साथ चले हैं हम दोनों
वाह! उमेश सर हार्दिक बधाई!
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