कैसे जाएगी याद दिल को बताऊं कैसे
मेरी नजरों में बसी तस्वीर हटाऊं कैसे।
उसने आवाज तलक भी नहीं दी मुझे
खुद के जीने के लिए सांस जुटाऊं कैसे।
की बड़ी दूर से थी मौहब्बत हमने
जख्म उनको मैं दिखाकर रूलाऊं कैसे।
अब हवाओं से दीवार यहां हिलती है
अपने सपनों की तस्वीर लगाऊं कैसे।
उनकी हर बात का हमने तो भरम रखा है
तोड़कर वो ही कसम आंख मिलाऊं कैसे।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहब ने जो इस्लाह दी है उसका शुक्रिया.
अब भाई शिवेन्द्र पर है वे अपने को इस इस्लाह के कितना हवाले कर पाते हैं.
शुभकामनाएँ.
बेशक इस राह की मंजिल ग़ज़ल है ...
लगे रहिये, मंजिल दूर नहीं
समर साहब ने अच्छी इस्लाह दी है, इस्लाह लेते रहिये ......यही सीखने का सबसे बढ़िया तरीका है
प्रिय मनोज जी, गिरिराज जी आपका आभारी हूं। आपने मुझमें उत्साह भरा है, अच्छा लगा। आप जैसे ज्ञानी मित्रों के सहयोग और मार्गदर्शन से मैं शायद कुछ सीख सकूं और आपके साथ चलने लायक हो जाऊं। एक बार फिर आपका धन्यवाद।
- शीवेन्द्र
आ. शिवेन्द्र भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है , प्रथम प्रयास बहुत सफल है । बाक़ी बातें आ. समर भाई कह ही चुके हैं । गज़ल के ऊपर बहर लिखने की आदत बना लीजियेगा , सभी को सीखने - सिखाने मे आसानी होती है ।
जनाब समर साहेब आदाब, ये मेरा पहला प्रयास है और आपने शुरूआत में अच्छे ज्ञान की बात बताई है। मैं आपकी बात अन्यथा नहीं ले रहा आप तो मुझे कुछ ज्ञान ही दे रहे हो। कमी पता चलेगी तभी दूर होगी। मैं आगे कोशिश सीखने की कर रहा हूं। मैंने एक बार पहली कक्षा ही पढ़ी है। उसके बाद थोड़ा ज्ञान प्राप्त कर उल्टा सीधा लिखा है। शुक्रिया दोबारा आपने मुझे रास्ता दिखाया।
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