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शक्ति छंद (नेपाल भूकंप )

  

अभी फूल पूरे खिले भी न थे

नई जिंदगी से मिले भी न थे

चली बेरहम वक़्त की आरियाँ

कटे शीश धड़ से मिटी क्यारियाँ

 

कहर बन फटी थरथराती जमी

जहाँ सांस आई वहीँ पे थमी

दिखाई अजब काल ने क्रूरता

फिरा क्रुद्ध यमराज यूँ घूरता

 

निवाले कई काल के हैं बने

दबे हर जगह जिस्म खूँ से सने

बचा जो यहाँ ढूँढता आसरा

सहारा बना एक का दूसरा

 

बचे काल से एक भाई बहन

सिसकते हुए घाव खाए गहन

हुए मूल से देख  महरूम ये

लिपटते हुए आज  मासूम ये

 

न माँ का पता ना पिता का पता

नहीं सोच पाए हुई क्या खता

कहर कुदरती बाढ़ क्या जलजला

कहाँ उम्र ये सोचने की भला

 (मौलिक एवं अप्रकाशित)

 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 18, 2015 at 1:05pm

सही तो है. यों, मुझे ऐसा लगता है कि दोनों पंक्तियों को आपस में बदल लेना श्रेयस्कर होगा. यथा --

रुकी  सांस नजरें  वहीँ पे थमीं

कहर बन फटी थरथराती जमीं

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:37pm

आ० सौरभ जी,आपके संशय का निवारण इस तरह करना चाह रही हूँ क्या सही रहेगा? कृपया बताएं 

कहर बन फटी थरथराती जमीं

रुकी  सांस नजरें  वहीँ पे थमीं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:28pm

आ० हरि प्रकाश जी ,शक्ति छंद पर यह प्रस्तुति आपको पसंद आई बहुत- बहुत आभार आपका  मेरा लिखना सार्थक हुआ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:26pm

प्रिय तनूजा जी,आपका हृदय से आभार | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:25pm

कृष्णा मिश्र भैया ,आपको प्रस्तुति पसंद आई मेरा लिखना सफल हुआ दिल से आभारी हूँ .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:24pm

मिथिलेश भैया ,आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ आपको रचना पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ .विषय ही ऐसा है जिसपर लिखना पढना भावुक कर ही देगा |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:22pm

आ० निर्मल नदीम जी ,इस होंसलाफ्जाई का तहे दिल से शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:21pm

केवल प्रसाद भैया ,आपके इस उत्साह वर्धन के लिए दिल से आभारी हूँ लिखना सफल हुआ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:19pm

आ० श्याम नारायण वर्मा जी ,आपका प्रभूत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2015 at 12:18pm

आ० सौरभ जी ,प्रतिक्रिया पर उत्तर देने में विलम्ब हुआ खेद है आज ही कोलाबा पंहुची हूँ तथा लेपटोप उपलब्ध हो पाया है तब आकर सभी को पढ़ रही हूँ आपको ये छंद पसंद आये मेरा लिखना सफल हुआ आपकी इस छंदात्मक प्रतिक्रिया हेतु दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ आपके  परामर्श का हृदय से स्वागत है इसका निवारण भी सोचूंगी बहुत- बहुत शुक्रिया सादर. 

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