“ मैंने यह सब कुछ अपनी मजबूरी में किया है, जज साहब. मृतक मेरा सगा भाई ही था, उसने मेरा जीना हराम कर दिया था. धोखे से मेरी जमीन हड़प ली और मैं अपने पत्नी और बच्चों के साथ सड़क पर आ गया था. भूखों मरने की नौबत आ गई थी, साहब..” उसने अपने भाई की हत्या का गुनाह कुबूल करते हुए अदालत में अपना बयान दिया
“ लेकिन, पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार तुमने अपने भाई को सुबह ५ बजे ही खेत पर, गला घोंटकर मार डाला फिर तुम दोपहर में उस लाश को खीचकर कहा ले जा रहे थे..” सरकारी वकील ने कटघरे में खड़े, अपराधी से पूछा
“ साहब!! मैंने उसे सुबह मौका देखकर मार तो डाला और भाग निकला. पर मुझे बाद में बहुत दुःख हुआ. दोपहर में धूप बहुत तेज थी, सोचा जैसा भी था, मेरा भाई ही था. मैं उसे छाँव में घसीट कर ले जारहा था, तभी गाँव वालों ने मुझे...”
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ जी. आपकी उपस्थिति व् प्रोत्साहन ,मनोबल को दोगुना कर गया. कुछ दिनों से गाँव पर ही था ,जहाँ कई बार बड़ों के मुख से एक बात बार-बार सुनने को मिली कि ' अपना मारकर छाँव में पटकता है' बस! फिर यह रचना लिख डाली.
सादर!
दो भाइयों की परवरिश किन हालात में हुई है और उनकी ज़िन्दग़ी किन हालात में आगे बढ़ती है, दोनों दो बातें हैं. जीने के क्रम में आगे के जीवन में व्यक्तिगत आवश्यकताएँ और स्वार्थ हावी होते जाते हैं. किन्तु, शैशवावस्था में घटी बातों के कई विन्दु उनके मन में इतना गहरा प्रभाव बना चुके होते हैं कि जीवन की पारस्परिक तारतम्यता टूट भले जाये, कभी विलीन नहीं होती.
इस मनोवैज्ञानिक पहलू का बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण हुआ है.
इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें, भाई जितेन्द्र जी.
शुभेच्छाएँ.
आदरणीय श्याम नारायण जी, प्रोत्साहन हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर!
आदरणीय डा.गोपाल जी. यह लघुकथा आज के समय में जहाँ सिर्फ स्वार्थ है यथार्थ भी बनती है. लघुकथा के माध्यम से महज मानव मनोभाव को उजागर किया है. जो बहुत कुछ गलत सहकर, उस परिणाम तक पहुचता है जिसे अंजाम नही देना चाहता है पर बाद में अफ़सोस होना तय है. आपके मार्गदर्शन की सदा अपेक्षा रहती है ,सर
सादर!
आ० जीतू जी
लोक प्रतिक्रिया जो भी हो पर मुझे यह कथा यथार्थ परक नहीं लगी I हत्या जैसे जघन्य अपराध के पूर्व भाई का खून पानी क्यों बना रहा ? आपसे बहुत अच्छी कथाएँ मिली है i इसीलिये अपेक्षाएं भी बहुत हैं . आपको स्नेह और आशीष .
सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥ |
आदरणीय गिरिराज जी. लघुकथा पर आपकी स्वीकारोक्ति हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर!
आदरणीया नेहा जी. आपका बहुत-बहुत आभार
सादर!
आदरणीय हरिप्रकाश जी. आपके प्रोतसाहन से बहुत मनोबल मिलता है, आपका हार्दिक आभार
सादर!
खून बोलता है , ज़रूर बोलता है ! आ. जीतेन्द्र भाई , अच्छी लगी आपकी लघुकथा ! आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online