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पहचान
"दादू दादू क्या कर रहे हो ।"
"कुछ नही बेटा झंडा सिल रहा हूँ।"
इतने सारे ?
"हाँ बेटा परसो 15 अगस्त है न सिलकर देना है।"
"क्यों दादू? इतने झंडे का क्या करेंगे वो !"
" बेटा !!स्कूल कॉलेज और सभी जगह लहराएंगे ।"
ओह !"और ये काला निशान क्या है?"
ओहो !!"बेटा बैठ मेरे पास सब बताता हूँ ।"
"ये हरा कपड़ा है न, इसका मतलब होता है हरयाली ,दूसरा है सफ़ेद इसका मतलब है पवित्रता, तीसरा है केसरिया इसका मतलब है शौर्य, और ये काला निशान अशोक चक्र है।यह झंडा भारत की पहचान है।"
"पर दादू ये सब बस झंडे बस में है क्या? देश में क्यों नहीं?"
बबिता चौबे शक्ति मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment by Saurabh Pandey on May 27, 2015 at 8:19pm

प्रकाशन केलिए की गयी हड़बड़ी किसी सशक्त रचना को भी कितना असहाय बना देती है !  इसका उदारणहै यह प्रस्तुति.

आदरणीा, आप आदरणीय गोपाल जी के कहे का अनुकरण कीजियेगा. आप इस रचना में आवश्यक सुधार कर पोस्ट कर देतीं. 

शुभेच्छाएँ

Comment by babita choubey shakti on May 19, 2015 at 10:48pm
जी गोपाल नारायण जी आगे ध्यान रखूंगी आभार आपने मुझे गलती से अवगत कराया ।धन्यबाद में ठीक करती हूँ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 19, 2015 at 4:04pm

आ० बबिता जी

सब कुछ ठीक लिखकर पञ्च लाईन  में गड़बड़ा गयीं आप - ऐसा होता तो बेहतर होता -

' पर दादू, ये  सब बस इस झंडे में है , देश में नहीं?

कृपया ध्यान दे...

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