गागा ल/गा लगा/लल गागा/ लगा लगा
कुछ और मुझ में जीने की हसरत बढ़ा गया
वादा किया था आने का, सचमुच में आ गया.
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इक रोज़ मुझ से कहते हुए “ख़ूब लगते हो”
वो अपनी आँख का मुझे काजल लगा गया.
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काफ़िर अगर जो मैं न बनूँ और क्या बनूँ ?
दिल के हरम को छोड़ के मेरा ख़ुदा गया.
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उट्ठा मैं हडबड़ा के टटोला इधर उधर,
ख़्वाबों में कौन आया, जगाया, चला गया.
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पत्ते झडे जो पक के करे उन का सोग कौन
अफ़सोस है खिज़ा को... कि पत्ता हरा गया.
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मेरी दुआएँ हैं कि उसे मंज़िलें मिलें
जो मुझ से राह पूछ के मुझ को गिरा गया.
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जुगनू था “नूर” और तो क्या उस के बस में था
लड़ना वो तीरगी से अगरचे सिखा गया.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
हम्म्म...
मगर हड़बड़ा की खड़खड़ी कानों में घरघराहट कर रही है, सर.. या मुझे ही सुनबहरी हुई है ?.. :-((
हड़बडा के को क्या अदबदा के किया जा सकता है ? .. या ऐसा ही कुछ ? आपके कहे की प्रतीक्षा रहेगी.
और हाँ,,, उठा तो मैं हडबडा के ही था ..चौंका बाद में कि कैसे कैसे सपने आने लगे हैं :)))))
शुक्रिया आ. सौरभ सर
ये नाचीज़ "फूल वाली" आपकी दाद से धन्य हुई जाती है ..
वो मिसरा काफ़िर न बनूँ मैं तो बता और क्या बनूँ गलत बाँध दिया ...
काफ़िर अगर जो मैं न बनूँ और क्या बनूँ ..... किये लेता हूँ
आप लोकसभा टीवी की कहते हैं? यहाँ तो टीवी देखना ही छोड़ रखा है पिछले 2 महीने से ..
दरअसल यहाँ कुछ अलग करने के चक्कर में गिल्लियाँ उड़ा ले गया विकेट कीपर ..
मार्गदर्शन का शुक्रिया :)))
आदरणीय, बुरा न मानें, आपकी ये ग़ज़ल रुटीनी तौर पर हुई लगी. आपकी वाली बात नहीं दिख रही. लगता है ’लोकसभा टीवी’ अधिक देखने लगे हैं आजकल ! .. :-))
काफ़िर न बनूँ मैं तो बता और क्या बनूँ ? .. इस मिसरे को कैसे बाँधा है आपने ?
उट्ठा हड़बड़ा के .. क्या आदरणीय, ये शेर तो खट्टा ’शुकुल’ आम हो गया, जिसका अचार ही बनता है. जबकि आप हापुस खिला-खिला के हमारा मन बढ़ाये हुए हैं. अब भुगतिये.. :-))
ऐसे बात बनेगी, तनिक देखिये --
उट्ठा मैं चौंक कर कि टटोला इधर उधर,
ख़्वाबों में कौन आया, जगाया, चला गया.
कहते हैं न, फूलवाली सोये-सोये भी हाथ चला दे, तो दो-चार गुलाब उछाल दे. इन शेरों पर मेरी वाह-वाह सुनिये --
इक रोज़ मुझ से कहते हुए “ख़ूब लगते हो”
वो अपनी आँख का मुझे काजल लगा गया.
पत्ते झडे जो पक के करे उन का सोग कौन
अफ़सोस है खिज़ा को... कि पत्ता हरा गया.
सादर
शुक्रिया आ. केवल प्रसाद जी
शुक्रिया आ. समर कबीर साहब
शुक्रिया आ. नरेंद्रसिंह जी
शुक्रिया आ. धर्मेन्द जी
शुक्रिया आ. गिरिराज जी
शुक्रिया आ. मिथिलेश जी
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