-: खींच अहं के मग से डग प्रभु :- (संसोधित)
खींच अहं के मग से डग प्रभु,
रख लें अपने चरणों में ||
है परम कांति अरु चरम शांति जो,
और किसी ना शरणों में |
सजा हुआ मद की बेड़ी मे,
जड़ा हुआ हूँ कहीं सिखा पर,
तोड़ एकांकी अहं का आसन,
मिला लें पद रज-कणों में |
खींच अहं के मग से डग प्रभु,
रख लें अपने चरणों में ||
यह राह नहीं है सीधा-सादा ;
मैं निकल पड़ा जिसपर |
रसहीन बचा बाकी जीवन,
अब गर्व करूँ किसपर |
अवसर पश्चाताप का ना तो,
फिर कहाँ मुक्ति मरणों में |
बस मुक्ति प्रभो के चरणों मे,
भक्ति भाव के वरणों में |
खींच अहं के मग से डग प्रभु,
रख लें अपने चरणों में ||
*****************
-शरद सिंह "विनोद" -
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. सुनील जी हार्दिक धन्यवाद...सादर
उत्साह वर्धन के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद कबीर साहब..सादर...
तहेदिल से आपको धन्यवाद क्रिश्ना जी..
धन्यवाद बागी सर... उत्साह वर्धन के लिए सादर नमन..
तहे दिल से शुक्रिया आ. वामनकर साहब!!
आदरणीय Dr.Prachi Singh जी ये कौशल भी आप लोगों के सानिध्य मे ही सईखना है... हौसला आफ़जाई के लिए धन्यवाद..सादर ||
आ० शरद सिंह जी , बहुत सुन्दर भाव इस भक्तिमय अभिव्यक्ति के..
अहंकार रहित हो कर ही ईश्वर के श्रीचरणों में समर्पण संभव है, जिस हेतु ईश्वर से प्रार्थना
टंकण त्रुटियाँ सह गयी हैं... शिल्प भी अभी और समय चाहता है..
इस प्रस्तुति पर मेरी शुभकामनाएं प्रेषित हैं , स्वीकार करें
बहुत सुन्दर रचना
हार्दिक बधाई
सुन्दर भक्तिगीत पर हार्दिक बधाई!भाई विनोद जी!
टाइपिंग त्रुटी को सुधार लें>>//सरणों//>शरणों
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