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सामयिक गीत: राम जी मुझे बचायें.... -- संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत:
राम जी मुझे बचायें....
-- संजीव 'सलिल'
*
राम जी मुझे बचायें....

एक गेंद के पीछे दौड़ें ग्यारह-ग्यारह लोग.
एक अरब काम तज देखें, अजब भयानक रोग..
राम जी मुझे बचायें,
रोग यह दूर भगायें....
*
परदेशी ने कह दिया कुछ सच्चा-कुछ झूठ.
भंग भरोसा हो रहा, जैसे मारी मूठ..
न आपस में टकरायें,
एक रहकर जय पायें...
*
कड़ी परीक्षा ले रही, प्रकृति- सब हों एक.
सकें सीख जापान से, अनुशासन-श्रम नेक..
समर्पण-ज्योति जलायें,
'सलिल' मिलकर जय पायें...
*

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Comment by Abhinav Arun on April 9, 2011 at 3:30pm
अहा समय की नब्ज़ पर चली सटीक कलम को सलाम !!! प्रभावी रचना !!
Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on April 6, 2011 at 6:27am
अति सुन्दर सामयिक और सहज प्रवाह से युक्त गीतिका ....पढ़ कर आनंद रस में भिगो देने में सक्षम श्रेष्ठ रचना

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 4, 2011 at 7:39pm

एक गेंद के पीछे दौड़ें ग्यारह-ग्यारह लोग.
एक अरब काम तज देखें, अजब भयानक रोग..
राम जी मुझे बचायें,
रोग यह दूर भगायें....

 

आचार्य जी, यह भयानक बिमारी बड़ी तेजी से बढती जा रही है और अब तो भविष्य में भी यह रोग थमता नज़र नहीं आता |

सुंदर और सामयिक रचना पर बधाई स्वीकार करे |

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