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कुछ द्विपदियाँ : संजीव 'सलिल'

कुछ द्विपदियाँ :

संजीव 'सलिल'

वक्-संगति में भी तनिक, गरिमा सके न त्याग.

राजहंस पहचान लें, 'सलिल' आप ही आप..

*

चाहे कोयल-नीड़ में, निज अंडे दे काग.

शिशु न मधुर स्वर बोलता, गए कर्कश राग..

*

रहें गृहस्थों बीच पर, अपना सके न भोग.

रामदेव बाबा 'सलिल', नित करते हैं योग..

*

मैकदे में बैठकर, प्याले पे प्याले पी गये.

'सलिल' फिर भी होश में रह, हाय! हम तो जी गए..

*

खूब आरक्षण दिया है, खूब बाँटी राहतें.

झुग्गियों में जो बसे, सुधरी नहीं उनकी गतें..

*

थक गए उपदेश देकर, संत मुल्ला पादरी.

सुन रहे प्रवचन मगर, छोड़ें नहीं श्रोता लतें.

*

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Comment by sanjiv verma 'salil' on April 19, 2011 at 8:17am

dhanyavad.

 

Comment by Tilak Raj Kapoor on April 18, 2011 at 10:36pm
सलिल जी की द्विपदियॉं हों या अन्‍य कोई साहित्‍य कृति, मनन चिंतन तो सहज ही आ जाता है।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 18, 2011 at 8:38am
सभी द्विपदिया भाव प्रधान और सार्थक, साधुवाद आचार्य जी |

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