For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कागज के ख़त...........'जान' गोरखपुरी

२२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२

 

मुद्दत से जिसने दुनिया वालों से मेरा नाम छुपा रक्खा है

जलने वालों ने ज़माने में उसका ही नाम बेवफा रक्खा है

 

**

 

रातों-रातों उठ उठ कर हमने आँसू बोयें हैं दिल की जमीं पर  

तुम क्या जानोंगे कैसे हमने बाग़-ए-इश्क ये हरा रक्खा है

 

**

 

वो मेहरबां है तो कुछ और न सुना दे,गर हो जाय खफा तो   

चूड़ी ,कंगन, पायल, बादल..कासिद कायनात को बना रक्खा है  

 

**

 

बात कलम और कासिद की क्या जाने ये ईमेल जमाने वाले

आँसू, बोसे, खुशबू, जादू कागज के ख़त में क्या क्या रक्खा है

 

**

 

इक ना इक दिन तो मिलके ही रहूँगा ‘‘जान’’ उस जादूगर से मैं  

जिसने टांकें हैं फलक पे सितारे,जिसने चाँद का दिया रक्खा है

 

 

 ************************************************** 

         मौलिक व् अप्रकाशित (c) जान गोरखपुरी

***************************************************

Views: 943

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 17, 2015 at 8:41pm

आ० विजय निकोर सर गजल पर हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत आभार!सादर!

Comment by vijay nikore on June 16, 2015 at 6:23pm

बहुत ही दिलकश, खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय कृष्णा जी।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 12, 2015 at 10:57am

आ० गिरिराज सर!आपके मार्गदर्शन का इन्तजार था,हृदय से आभारी हूँ...मुझे भी कुछ जगहों पर गेयता में दिक्क़त दिख रही है,बहुत प्रयास किया था इसे कम करने का पर सफल नही हो सका,गेयता का सुधार भविष्य के लिए छोड़ रक्खा है,मुझे पूर्ण विश्वास है कि गाते-गुनगुनाते शब्दसंयोजन धीरे धीरे भविष्य में ठीक होता जायेगा!!सादर!!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 12, 2015 at 10:50am

आ० आशुतोष सर गज़ल पर आपकी उपस्थिति पाकर मन हर्षित हुआ,आपकी हौसलाफजाई से लेखनी को नवीन उर्जा मिली है!आ० बहुत बहुत शुक्रिया!आभार!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 12, 2015 at 10:45am

एक विवाह समारोह में शिरकत के लिए बाहर गया हुआ था इस कारण से समय पर प्रतिउत्तर नही दे सका,इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2015 at 6:09pm

आदरनीय कृष्णा भाई , गज़ल खूब कही है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें । बस गेयता मे कुछ कमी लगी है , शब्द विन्यास को देखें तो  वो कमी भी दूर हो जायेगी ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 8, 2015 at 5:17pm

प्रिय कृष्णा जी ..इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए आपको ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 6, 2015 at 9:59pm
आ० vijai shanker सर!आपकी उपस्थिति का इन्जार रहता है!हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय!सादर!
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 6, 2015 at 9:23pm
आ० समर सर!आप जैसे गजलगो से गजल पर मान मिलना अपने आप में अलग अहमियत रखता है!आ० स्नेह बनाये रक्खें! हार्दिक आभार!
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 6, 2015 at 10:22am

बात कलम और कासिद की क्या जाने ये ईमेल जमाने वाले
आँसू, बोसे, खुशबू, जादू कागज के ख़त में क्या क्या रक्खा है
बहुत खूब, प्रिय कृष मिश्रा जी , बधाई, सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
6 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Jul 3
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Jul 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service