आओ न !
मेरे शब्दों को सांसें दे दो
हर क्षण तुम्हारी स्मृतियों में
मेरे स्नेहिल शब्द
तुम्हें सम्बोधित करने को
आकुल रहते हैं
गयी हो जबसे
मयंक भी उदासी का
पीला लिबास पहन
रजनी के आँगन में बैठ
तुम्हारे आने का इंतज़ार करता है
न जाने अपने प्यार के बिना
तुम कैसे जी लेती हो
यहाँ तो हर क्षण तुम्हारी आस है
तुम बिन हर सांस अंतिम सांस है
तुम नहीं जानती
तुम्हारी न आने की ज़िद क्या कहर ढायेगी
जिस्म रहेंगे मगर
जिस्मों से जान चली जाएगी
रजनी भी मयंक की उदासी न दूर कर पाएगी
वक्त की पालकी पे
ज़िंदगी भी यूँ ही गुज़र जाएगी
यादों की गर्द में
दिल भी खो जायेगा
धड़कन भी खो जायेगी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी रचना के मर्म पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आ० सुनील सरना जी आपने मंत्रमुग्ध कर दिया है!दिल बाग़ बाग़ हो गया इस कृति पर!नमन्!
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना के मर्म पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील भाई , सुन्दर भाव पूर्ण रचना हुई है , क्या बात है , दिली बधाइयाँ । रजनी भी मयंक की उदासी न दूर कर पाएगी
वक्त की पालकी पे
ज़िंदगी भी यूँ ही गुज़र जाएगी
यादों की गर्द में
दिल भी खो जायेगा
धड़कन भी खो जायेगी -- बहुत सुन्दर पंक्तियाँ !!
आदरणीय shree suneel जी रचना के मर्म पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Kewal Prasad जी रचना के मर्म पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय vijay nikore जी रचना के मर्म पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आ0 सुशील भाई जी, सुंदर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर
बहुत ही सुन्दर भाव ! बधाई।
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