For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल-सुख की भी दोस्त गम सी तासीर बन गयी है।

221 2122 221 2122

नाकामयाबी मेरी तकदीर बन गयी है।
अब जिन्दगी ये गम की तस्वीर बन गयी है।।

मरहम समय का भी कुछ आराम दे न पाया।
ये चोट अब जिगर की जागीर बन गयी है।।

उलझी पडी है उल्फत की बेडियों में साँसें।
यादों से मिल के धडकन भी तीर बन गयी है।।

सुनती है गर कहीं तू इक बार आ के मिल ले।
रो रो के मेरी हालत गम्भीर बन गयी है।।

हँसता हुँ तब भी चहरा छोडें नहीं उदासी।
सुख की भी दोस्त गम सी तासीर बन गयी है।।

आँखों ने आँसुओं से चहरे पे लिख दिया है ।
गुरबत जमाने में इक तकसीर बन गयी है।।

उसके लिए मुहब्बत इक खेल था एे 'राहुल'।
तेरे लिए तो आँखों का नीर बन गयी है।।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1127

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 6, 2015 at 7:04am
आदरणीय Saurabh Pandey जी बस आपका आशिर्वाद है। जनाब से निवेदन है क्रपया समय समय पर इसी तरह मार्ग दर्शन करते रहें। यह हमारे जैसे नौसिखियाओं के लिए वरदान समान है। सादर नमन
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 6, 2015 at 7:02am
आदरणीय Saurabh Pandey जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2015 at 12:51am

भाई राहुल डांगीजी, आपकी प्रस्तुत ग़ज़ल सँभल-सँभल कर हुई है. लाज़िमी भी है. लेकिन ग़ज़ल बेहतर हुई. ऐसे ही अभ्यासरत रहें.
शुभकामनाएँ

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 18, 2015 at 3:27pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी शुक्रिया मैंनें समर कबीर जी के सुझाव अनुसार सुधार कर रहा हुँ बस व्यस्त बहुत ज्यादा हुँ इसलिए जल्दी सुधार नहीं कर पा रहा हुँ जिम्मेदारीयों से उलझा पडा हुँ सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 18, 2015 at 3:01pm

आदरणीय राहुल भाई , क्या खूब गज़ल कही है , वाह !! हार्दिक बधाइयाँ स्वीकर कीजिये । आ, समर भाई जी का कहना उचित है । बदलाव कर लीजियेगा ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on June 18, 2015 at 1:45pm
आदरणीय वीनस भाई जी शुक्रिया आदरणीय
Comment by वीनस केसरी on June 18, 2015 at 1:41pm

वाह बहुत शानदार ग़ज़ल प्रस्तुत की है
बहुत खूब

समर साहब की इस्लाह पर गौर फरमाएं तो दोष भी दूर हो जायेगा ...

Comment by Samar kabeer on June 17, 2015 at 10:52pm
बिल्कुल बदलना होगा,मैंने पहले ही लिख दिया था आप इस के लिये सक्षम हैं ,देखिये एक इशारे में आपने अपनी दूसरी ग़लती ख़ुद ही पकड़ ली ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on June 17, 2015 at 9:35pm
आदरणीय Kewal Prasad जी सादर धन्यवाद
Comment by Rahul Dangi Panchal on June 17, 2015 at 6:58pm
आदरणीय Kewal Prasad जी शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
16 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
16 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service