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भाई राहुलजी, शिष्टाचार के अंतर्गत भले ही स्वयं को असहाय, अशक्त की तरह प्रस्तुत किया जाता है. परन्तु किसी सूरत में स्वयं को ’मंदबुद्धि’ या ’कम बुद्धि’ कहना उचित हीं. ’कम बुद्धि’ या ’मंदबुद्धि’ कभी सारस्वत कर्म हेतु उद्यत नहीं होते. आगे आप अपनी रचनाओं पर ध्यान दें. हार्दिक शुभेच्छाएँ.
भाई राहुल जी, आप बाबहर ग़ज़ल कहने लगे यह बहुत बड़ी उछाल है. शुभकामनाएँ
धीरे-धीरे आपकी लगन रंग ला रही है..
बहुत दिनों बाद आपकी ग़ज़ल से रु ब रु हो रहा हूँ
शानदार ग़ज़ल हुई है, दाद कुबूल फरमाए
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