"तुमने जन्म देकर कोई एहसान नहीं किया है ..! क्या हमनें कहा था कि हमें इस दुनिया में लाओ ..? एक ब्रांडेड टी - शर्ट के लिए तो तरसते है हम .... अगर परवरिश करने की ताकत नहीं थी तो पैदा करने से पहले सोचना था ना ... अब हमारा क्या ...? "
"इसलिए तो सब घरबार बेचकर तुम्हारा एडमिशन इतने बडे़ काॅलेज में करवाया है कि तुम अपने बच्चों को वो सब दो जो हम ना दे सकें तुम्हें । "
"कितना शर्मिंदा होता हूँ वहाँ कालेज में इन साधारण कपडों में ... कितना अच्छा होता कि मै पढ़ाई ही नहीं करता ..! "
कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आ. kanta roy जी ,,बढ़िया लघुकथा हुई है ,,आप वाक्यों के आगे कौन ,किससे कह रहा है ,,,स्पष्ट करें तो और सुन्दर हो ,,,सायद ऐसा मुझे लग रहा हो |
मैंने कही पढ़ा था ---रावण जैसा विद्वान कहता है , पिता वह मूर्ख प्राणी है जो अपने दुश्मनों को पाल पोस कर बड़ा करता है . इस कथन में कितना सत्य है यह सोचने की बात है आपके सारे वात्सल्य , दुलार और बलिदान की धज्जी बेटा एक ही प्रश्न में उधेड़ देता है आपने जिदगी में मेरे लिए किया ही क्या ?-----------पर वह बेटा भी कभी बाप बनता है सिर्फ पछताने के लिए. आपकी कहानी इस मूलभूत प्रश्न को बड़े सलीके से उठाती है . सादर.
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