समय छिपा जा सूर्य चक्र में ,जहां दुनिया सारी डोले
धरती से लेकर आसमान में ,नित नये रहस्य को खोले !
कली के अंदर छिपे फूल में, अपना नाना रूप छिपाये
घूम- घूम कर मधुकर उपवन में, सुंदर राग सुनाये !
फूल के अंदर छिपे सुगंध में , अमृत के कण घोले
पावन रस को मधुकर पीकर, फूलों से कुछ बोले ।
मधुर प्रेम का संदेश लेकर,जीवन की कड़ी को जोड़े,
चंद दिनो के अपने जीवन में, दुनिया में नव जीवन घोले !
फूल के अंदर छिपे बीज में , अपना सुंदर भविस्य सँजोये,
नीर,समीर धूप से हटकर ,गहरी निंद्रा में सोये ।
मौसम ने जब करवट बदला, बीज ने आंखे खोला,
अंगड़ाई ले बीज जगत में उसने माँ धरती से बोला ।
खुली आँख जब वर्षा ऋतु में , अमित प्यार जग में बरसाए,
जड़ चेतन को जोड़ कड़ी में,पूरे जगत में खुशी लुटाये !
एक प्यारा पौधा छिपा बीज में, दुनिया को नजर न आए ,
गर्मी सर्दी कठिन समय में ,धरती पर जीवन चक्र सँवारे ।
पशु, पक्षी और मानव जीवन में खुशियाँ ले हर रोज पधारे ,
सबका दुख हर एक पल में ,अदृश्य डोर से सबको जोड़े ।
आदि-अंत के सारे बंधन में,जीवन चक्र का नाता जोड़े ॥
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ० राम आसरे जी
आपके भाव अच्छे है , तुक भी ठीक है बस मात्राओं पर ध्यान रखे . किसी पंक्ति में अधिक मात्रा है तो किसी में कम . इससे सामान लय या रिदम नहीं बन पाती . सादर .
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