क्यारी देखी फूल बिन ,माली हुआ उदास ।
कह दी मन की बात सब, जा पेड़ों के पास ॥
हिन्दी को समृद्धि करन हित, मन में जागी आस ।
गाँव गली हर शहर तक ,करना अथक प्रयास ॥
कदम बढ़ाओ सड़क पर ,मन में रख कर विश्वाश ।
मिली सफलता एक दिन ,सबकी पूरी आश ॥
सूरज चमके अम्बर में , करे तिमिर का नाश ।
अज्ञानता का भय मिटे, फैले जगत प्रकाश ॥
चंदा दमकी आसमान ,गई जगत में छाय ।
हिन्दी पहुंची जन जन में, तब बाधा मिट जाय ॥
हिन्दी हमारी ताज अब, सबको रख कर पास ।
फूटा भांडा ढोंग का ,हुआ तिमिर का नाश ॥
घनी अंधेरी राह में जब राह न दिखती होय ।
हिन्दी साथ में तब चली, राह सुगम तब होय ॥
जब हिन्दी में बात करें, तो गर्व का अनुभव होय ।
गाँव शहर परदेश में , माथा नीच न होय ॥
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, चहुं दिश हिन्दी आज ।
जाति धर्म के बंधन मिटे, आयी समता आज ॥
दूध और पानी की तरह ,मिल गए सभी समाज ॥
पर्वत सोहे न भाल बिन, नदी बहे बिन नीर ।
देश न सोहे हिन्दी बिन , जीवन रहित शरीर ॥
ध्वज फहराए विश्व में, नभ तक जाए छाय ।
ममता जागे हृदय में , हिन्दी सभी अपनाय ॥
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आपको बहुत बहुत आभार अपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी रचना को पढ़ा और सराहा धन्यवाद श्री मान कबीर जी
आपका सहृदय आभार
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