For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मत्तगयन्द सवैया // सात भगण + दो गुरू

बालक बुद्धि यही समझे, अखबार सुधार किया करते हैं।
जूठन खीर न दूध गिरे, इस हेतु बिछा भुइ को ढकते है।।
आखर-आखर कालिख ही, मन सोच-विचार भली कहते हैं।
मानव नित्य प्रलाप करे, अखबार प्रशासन ही छलते हैं।।

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

Views: 421

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 30, 2015 at 11:07pm

आ0 भंडारी भाई जी,   छंद पर आपकी उपस्थिति के  लिये आपका  हार्दिक आभार.  सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2015 at 1:57pm

आदरणीय केवल भाई , इस छंद को सस्वर पाठ कर बहुत आनंद आया । बाक़ी बातें तो मै नहीं जानता , आदरणीय सौरभ भाई जी के कहे का ध्यान दीजियेगा ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 28, 2015 at 10:20am

आ0 सौरभ सर जी,  आपकी बात सोलहोंआने सही है. किसी भी छंद रचना के उपरांत उसका पुनरावलोकन करना अतिआवश्यक होता है, जिस्की चूक हुइ हैं. आपका आभार. सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 25, 2015 at 10:54pm

मत्तगयंद सवैया की प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद, भाई केवल प्रसादजी. शिल्प के स्तर पर सारे पद (पंक्तियाँ) सधे हुए हैं. किन्तु, भाई इन पदों में संप्रेषणीयता का वह स्तर नहीं है कि जो एक छान्दसिक रचना से अपेक्षित होता है.

सात भगण+दो गुरु के वर्ण पर संयोजित हुए शब्द यदि तार्किक ढंग से भाव अभिव्यक्त न करें तो छन्द का उद्येश्य प्रभावित होता है. आपने बहुत कुछ कहने का प्रयास किया है लेकिन उस कहे को रुक कर यह देखना आवश्यक था न, कि क्या प्रस्तुति आपके विन्दुओं को व्यवस्थित ढंग से रख पा रही है.

छन्द के प्रति लोगों (पाठकों) का एक तो वैसे ही दुराव बनता जा रहा है. यदि ऐसे एक या दो छन्द बिना पूरी आश्वस्ति के प्रस्तुत होने लगे, तो दवाब छान्दसिक रचनाओं पर ही बनेगा. आप एक अच्छे छन्द-रचनाकार हैं. आपकी प्रस्तुतियों से अपेक्षाएँ यदि हैं तो यह आपके रचनाकर्म के प्रति सम्मान के भाव ही हैं.
विश्वास है आप मेरी बातें समझ रहे हैं.
शुभेच्छाएँ.
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service