गज़ल....खार रचता आदमी....
बह्र... 2122 2122 212
खुद को खुद से कब समझता आदमी.
जीत कर जब हार कहता आदमी
मौन में संजीवनी तो है मगर
मैं हुआ कब चुप अकडता आदमी.
आस्मां के पार भी खुशियां दुखी,
हर कदम पर शूल सहता आदमी.
फूल-कलियां मुस्कराती हर समय,
देवता को भेंट करता आदमी.
आदमी ही आदमी को पूजता,
आचरण पशुता अखरता आदमी.
प्यार में सम्वेदना करुणा बहुत,
कीट, खग, पशु हित विलखता आदमी.
धर्म "सत्यम" के शिवा कुछ भी नहीं,
मैं, अहम वश खार रचता आदमी.
के0पी0 सत्यम / मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 लडीवाला भाईजी, आपका तहेदिल से शुक्रिया ...आभार.....सादर
आ0 भंडारी भाई जी, गज़ल पर विशद तर्कसंगत विवेचना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया ...आभार. गज़ल की बारीकियो तक मेरी पहुंच अभी नही बन पाई है....फिर भी अपनी समझ के अनुसार प्रयासरत हूं. बिना आप लोगो के यह सब सम्भव नहीं हो सकेगा.
मौन में संजीवनी तो है मगर --
कब हुआ चुप बस अकडता आदमी. -- उला मे आये मगर शब्द के भाव के अनुसार, कौन सा भाव सानी मे हो , पहले वाला या मै जो कह रहा हूँ अभी वो ॥.............. " मैं " सर्वनाम और क्रिया विशेषण दोनो के लिये ही प्रयुक्त हो रहा है. इसलिये मेरे हिसाब से पहले वाला ही सही है.
आदमी हो, पूज्य लगता आदमी
किंतु पशुता हो , अखरता आदमी. --- रचना कार के भावों तक पहुँचना आसान नहीं होता , फिर भी अगर कुछ सही लगे तो स्वीकार कीजिये ,----------गेयता नही आ रही है.........पहले वाला ही सही है.
हाँ एक बात और जो पहले भूल गया था --
मैं, अहम वश खार रचता आदमी. --- मै और अहम एक ही भाव के शब्द हैं........आपने बिल्कुल सही कहा . मैं सहमत हूँ.
पर , अहम वश खार रचता आदमी. --- ऐसा करें तो ? सोचियेगा । .....बहुत ही सुंदर भाव....शुक्रिया आभार. सादर
बहुत सुंदर और भावरण गजल ले लिए बधाई श्री केवल प्रसाद जी
आदरणीय केवल भाई , भाव और तार्किकता को समझाना मुश्किल काम होता है , फिर भ्र्र उदारण दे के प्रयास कर रहा हूँ , उला को सानी का कौन भाव संतुष्ट कर रहा है , मेरी समझ में --
मौन में संजीवनी तो है मगर --
कब हुआ चुप बस अकडता आदमी. -- उला मे आये मगर शब्द के भाव के अनुसार सोचियेगा , कौन सा भाव सानी मे हो , पहले वाला या मै जो कह रहा हूँ अभी वो ॥
आदमी हो, पूज्य लगता आदमी
किंतु पशुता हो , अखरता आदमी. --- रचना कार के भावों तक पहुँचना आसान नहीं होता , फिर भी अगर कुछ सही लगे तो स्वीकार कीजिये ,
हाँ एक बात और जो पहले भूल गया था --
मैं, अहम वश खार रचता आदमी. --- मै और अहम एक ही भाव के शब्द हैं
पर , अहम वश खार रचता आदमी. --- ऐसा करें तो ? सोचियेगा ।
आ0 वामनकर भाई जी, आपका हार्दिक आभार. सादर
आ0 जान भाई जी, आपका हार्दिक आभार. सादर
आ0 भन्डारी भाई जी, आपका हार्दिक आभार. भाई जी मैं समझ नही सका तनिक और स्पष्ट करें.
आदरणीय सत्यम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई आपको
मौन में संजीवनी तो है मगर
मैं हुआ कब चुप अकडता आदमी वाह वाह !
सुन्दर गज़ल हुयी है आदरणीय केवल सर! बधाई!
आदरणीय केवल भाई , गज़ल खूब सुन्दर हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ गज़ल के लिये । तार्किकता के लिहाज़ से चाहें तो शे र न. 2 और शे र न. 5 को आप और देख सकतें हैं ॥
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