२१२२/२१२२/२१२/
मंज़िलों का जो पता दे जाएगा
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा दे जाएगा.
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और थोड़ा फ़ासला दे जाएगा
ज़िंदगी की गर दुआ दे जाएगा.
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दिल को सतरंगी छटा दे जाएगा
फिर धड़कने की अदा दे जाएगा.
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ग़म हमें अब और क्या दे जाएगा
बस नया इक तज्रिबा दे जाएगा.
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आएगा कोई पयम्बर फ़िर नया
फ़िर नया हम को ख़ुदा दे जाएगा.
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जब वो सोचेगा हमारे वास्ते
फिर वो मीरा, राबिया दे जाएगा.
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“नूर” बरसेगा ख़ुदा का एक दिन
मुश्किलों में रास्ता दे जाएगा.
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
वाह बहुत सुंदर ॥
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