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मत्तगयन्द सवैया. (सात भगण और दो गुरु )

1.

वक्त बली अति सौम्य तुला रख नीति- सुप्रीति सदा पगता है.

काल अकाल  विधी - विधना  सबके  सब  मूक  बयां करता है.

मीन - नदी  अति व्यग्र  रहें, बगुला नित शांत मजा चखता है.

वक्त  समग्र  विकास  करे  पर,  मानव  सत्य  नहीं  गहता है.

2.

स्नेह  मुहब्बत  संग  दया  समता,  करुणाकर  ही  रखते  हैं.

क्रूर  कठोर  अघोर  सभी  जन  में, सदबुद्धि  वही  फलते  हैं.

रावण  कौरव  कंस  बली  हिरणाक्ष, सभी  पल  में  क्ष्ररते  हैं.

धर्म सधे जनमानस  के  हित, सत्यम  नित्य  कहा  करते  हैं.

के0पी0 सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 10, 2015 at 9:08pm

आ0  राणा भाई जी, आपने बिल्कुल सही कहा है नित को नित्य होना  चाहिये था. अभी सही कर देता हूँ.  आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 10, 2015 at 9:04pm

आ0 भंडारी भाई जी, आपका हार्दिक आभार. सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 6, 2015 at 5:35pm

बहुत सुन्दर संदेशपरक सवैये कहे हैं आदरणीय केवल प्रसाद जी,| दूसरे सवैये की अंतिम पंक्ति में एक मात्रा कम लग रही है, देख लें| हार्दिक शुभकामनाएं|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 6, 2015 at 11:01am

वक्त  समग्र  विकास  करे  पर,  मानव  सत्य  नहीं  गहता है   -- क्या बात है , बहुत सुन्दर , हार्दिक बधाई आदरणीय केवल भाई ।

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