मत्तगयन्द सवैया. (सात भगण और दो गुरु )
1.
वक्त बली अति सौम्य तुला रख नीति- सुप्रीति सदा पगता है.
काल अकाल विधी - विधना सबके सब मूक बयां करता है.
मीन - नदी अति व्यग्र रहें, बगुला नित शांत मजा चखता है.
वक्त समग्र विकास करे पर, मानव सत्य नहीं गहता है.
2.
स्नेह मुहब्बत संग दया समता, करुणाकर ही रखते हैं.
क्रूर कठोर अघोर सभी जन में, सदबुद्धि वही फलते हैं.
रावण कौरव कंस बली हिरणाक्ष, सभी पल में क्ष्ररते हैं.
धर्म सधे जनमानस के हित, सत्यम नित्य कहा करते हैं.
के0पी0 सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 राणा भाई जी, आपने बिल्कुल सही कहा है नित को नित्य होना चाहिये था. अभी सही कर देता हूँ. आपका हार्दिक आभार. सादर
आ0 भंडारी भाई जी, आपका हार्दिक आभार. सादर
बहुत सुन्दर संदेशपरक सवैये कहे हैं आदरणीय केवल प्रसाद जी,| दूसरे सवैये की अंतिम पंक्ति में एक मात्रा कम लग रही है, देख लें| हार्दिक शुभकामनाएं|
वक्त समग्र विकास करे पर, मानव सत्य नहीं गहता है -- क्या बात है , बहुत सुन्दर , हार्दिक बधाई आदरणीय केवल भाई ।
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