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मजहब जिसने इंसानों को आपस में जोड़ा है

मजहब जिसने इंसानों को आपस में जोड़ा है 

आज उसी मजहब ने क्यूँ दिल इंसा का तोडा है 

कितनी सुंदर धरती है ये कितने सुंदर मंजर 

पर राहों में उल्फत की क्यूँ नफरत का रोड़ा है 

जिन की ख्वाइश धन दौलत दुनिया भर की हथिया लें 

गर समझें तो आज समझ लें ये जीवन थोडा है 

राम नाम जिस पाहन पर वो सागर में उतराए 

डूब गया वो राम नाम के बिन जिसको छोड़ा है 

तब तक चैन कहाँ पाया है इस इंसा ने जग में 

जब तक होकर बेलगाम दौड़ा मन का घोडा है 

बड़े बड़े दिग्गजों शूरमा के तुम नाम गिनाते 

एक बता दो वक़्त की जिसने धारा को मोड़ा है 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 6, 2015 at 10:09pm

आदरणीय श्याम जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद सादर 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 6, 2015 at 8:36pm

बड़े बड़े दिग्गजों शूरमा के तुम नाम गिनाते 

एक बता दो वक़्त की जिसने धारा को मोड़ा है 

लाजवाब!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 6, 2015 at 3:44pm

आदरणीय आशुतोष जी 

अच्छी ग़ज़ल हुई है ... काफिया का बड़ा टोटा है 

सादर 

Comment by Pari M Shlok on July 6, 2015 at 2:40pm
वाह बहुत भावपूर्ण उम्दा प्रस्तुति
Comment by Shyam Narain Verma on July 6, 2015 at 10:09am

सुन्दर सार्थक रचना  ने लिये आपको बधाई ….

सादर 

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